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स्वतन्त्रता का संकल्प / २१
'पाप को तुम एक रटी-रटाई भाषा में क्यों लेते हो? क्या परतंत्रता पाप नहीं है? वह सबसे बड़ा पाप है और इसलिए है कि वह सब पापों की जड़ है। महावीर की घोषणा का हृदय यह है - मैं ऐसा कोई कार्य नहीं करूंगा जो मेरी स्वतंत्रता के लिए बाधा बने।' महावीर ने स्वतंत्रता का अनुभव प्राप्त करने के पश्चात् यह कभी नहीं कहा कि सब आदमी घर छोड़कर जंगल में चले जाएं। उन्होंने उन लोगों के लिए इसका प्रतिपादन किया जो सब सीमाओं से मुक्त स्वतंत्रता का अनुभव करना चाहते हैं।
__ 'महावीर ने केवल घर का ही विसर्जन नहीं किया, धर्म-सम्प्रदाय का भी विसर्जन किया था। भगवान् पार्श्व का धर्म-सम्प्रदाय उन्हें परम्परा से प्राप्त था, फिर भी वे उसमें दीक्षित नहीं हुए। महावीर ने दीक्षित होते ही संकल्प किया – मेरी स्वतंत्रता में बाधा डालने वाली जो भी परिस्थितियां उत्पन्न होंगी, उनका मैं सामना करूंगा, उनके सामने कभी नहीं झुकूगा। मुझे अपने शरीर का विसर्जन मान्य है, परतंत्रता का वरण मान्य नहीं होगा।"
प्रबुद्ध अनन्त की ओर टकटकी लगाए देख रहा था। वह जानता था कि शून्य को भरने के लिए महाशून्य से बढ़कर कोई सहारा नहीं है।
१. आयारचूला,१५३४।
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