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________________ २०/ श्रमण महावीर जंगल में भी हो सकता है।' उसके लम्बे प्रवचन को विराम देते हुए मैंने पूछा, 'मित्र ! पहले यह तो बताओ, वह भीतरी बंधन क्या है? 'अहंकार और ममकार।' 'महावीर ने पहले इनका विसर्जन किया, फिर घर का । तुम्हारे कहने का अभिप्राय यही है न?' 'जी हां।' अहंकार और ममकार का विसर्जन एक मानसिक घटना है। स्वतंत्रता की खोज में उसकी प्राथमिकता है। मैं इससे असहमत नहीं हूं। किन्तु मेरे मित्र ! बाह्य जगत् के साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए क्या बाहरी सीमाओं का विसर्जन अनिवार्य नहीं है? मानसिक जगत में घटित होने वाली घटना को मैं कैसे देख सकता हूं? उस घटना से मेरा सीधा सम्पर्क हो जाता है जो बाह्य जगत् में घटित होती है। मैंने महावीर के विसर्जन को प्राथमिकता इसलिए दी है कि वह बाह्य जगत् में घटित होने वाली घटना है। उसने समूचे लोक को आश्वस्त कर दिया कि महावीर स्वतंत्रता की खोज के लिए घर से निकल पड़े हैं। उनका अभिनिष्क्रमण समूची मानव-जाति के लिए प्रकाश-स्तम्भ होगा।' 'क्या गृहवासी मनुष्य स्वतंत्रता का अनुभव नहीं कर सकता?' 'मैं यह कब कहता हूं कि नहीं कर सकता। मैं यह कहना चाहता हूं कि जो व्यक्ति स्वतंत्रता की लौ को अखंड रखना चाहता है, उसे एक घर का विसर्जन करना ही होगा। वह विसर्जन, मेरी दृष्टि में, सब घरों को अपना घर बना लेने की प्रक्रिया है।' ___ 'तुम महावीर को एकांगिता के आदर्श में क्यों प्रतिबिम्बित कर रहे हो, देव!' _ 'मैं इस आरोप को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूं। मैंने एक क्षण के लिए भी यह नहीं कहा कि गृहवासी मनुष्य स्वतंत्रता की खोज और उसका अनुभव नहीं कर सकता । मैं उन लोगों के लिए घर का विसर्जन आवश्यक मानता हूं, जो सबके साथ घुलमिलकर उन्हें स्वतंत्रता का देय देना चाहते हैं। जहां तक मैं समझ पाया हूं, महावीर ने इसीलिए स्वतंत्रता के संकल्प की सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी।' 'वह घोषणा क्या थी?' 'महावीर ने ज्ञातखंड उद्यान में वैशाली के हजारों-हजारों लोगों के सामने यह घोषणा की, 'आज से मेरे लिए वे सब कार्य अकरणीय हैं जो पाप है।५।। 'पाप आन्तरिक ग्रन्थि है। महावीर ने उसका आचरण न करने की घोषणा की। इसमें घर के विसर्जन की बात कहां है?' १. आयारचूला, १५३२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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