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________________ स्वतन्त्रता का संकल्प मैं जब-जब यह सुनता हूं कि मृगसर कृष्णा दशमी को महावीर दीक्षित हो गए, तब-तब मेरे सामने कुछ प्रश्न उभर आते हैं। क्या कोई व्यक्ति एक ही दिन में दीक्षित हो जाता है? क्या दीक्षा कोई आकस्मिक घटना है? क्या यह दीर्घकालीन चिंतन-मनन का परिणाम नहीं है? यदि इन प्रश्नों के लिए अवकाश है तो फिर कोई आदमी एक ही दिन में दीक्षित कैसे हो सकता है ? इस संदर्भ में मेरी दृष्टि उस तर्कशास्त्रीय घट पर जा टिकी जो अभी-अभी जावा से निकाला गया है। उस पर जल की एक बूंद गिरी और वह सूख गई, दूसरी गिरी और वह भी सूख गई। बूंदों के गिरने और सूखने का क्रम चालू रहा। आखिरी बूंद ने घट को गीला कर दिया। मैंने देखा घट की आर्द्रता आखिरी बूंद की निष्पत्ति नहीं है, वह दीर्घकालीन बिन्दुपात की निष्पत्ति है । इसी तथ्य के परिपार्श्व में मैंने देखा, दीक्षा किसी एक दिन की निष्पत्ति नहीं है। वह दीर्घकालीन चिन्तन-मनन और अभ्यास की निष्पत्ति है । महावीर ने दीर्घकाल तक उस समय के प्रसिद्ध वादों - क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद - का सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन किया। उनकी दीक्षा उसी की निष्पत्ति है 1 ३ महावीर घर से अभिनिष्क्रमण कर क्षत्रियकुंडपुर के बाहर वाले उद्यान में चले गये । यह स्वतंत्रता का पहला चरण था। घर व्यक्ति को एक सीमा देता है। स्वतंत्रता का अन्वेषी इस सीमा को तोड़, अखण्ड भूमि और अखण्ड आकाश को अपना घर बना लेता है। स्वतंत्रता का दूसरा चरण था परिवार से मुक्ति । परिवार व्यक्ति को दूसरों से विभक्त करता है। स्वतंत्रता का अन्वेषी उसका विसर्जन कर मानव-जाति के साथ एकता स्थापित कर लेता है । प्रबुद्ध मेरा अभिन्न मित्र है । वह स्वतंत्रता के लिए विसर्जन की प्राथमिकता देने के पक्ष में नहीं है। उसका कहना है कि भीतरी बन्धन के टूटने पर बाहरी बंधन हो या न हो, कोई अन्तर नहीं आता और भीतरी बंधन के अस्तित्व में बाहरी बंधन हो या न हो, कोई अंतर नहीं आता। उसने अपने पक्ष की पुष्टि में कहा, 'महावीर ने पहले भीतर की ग्रंथियों को खोला था, फिर तुम बाहरी ग्रन्थियों के खुलने को प्राथमिकता क्यों देते हो? उसने अपनी स्थापना के समर्थन में आचारांग सूत्र की एक पहेली भी प्रस्तुत कर दी - 'स्वतंत्रता का अनुभव गांव में भी नहीं होता, जंगल में भी नहीं होता। वह गांव में भी हो सकता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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