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________________ १८ / श्रमण महावीर दीवारों में बन्द रहकर भी मन की दीवारों का अतिक्रमण करने लगे। किसी वस्तु में बद्ध रहकर जीने का अर्थ उनकी दृष्टि में था स्वतंत्रता का हनन । उन्होंने स्वतंत्रता की साधना के तीन आयाम एक साथ खोल दिए - एक था अहिंसा, दूसरा सत्य और तीसरा ब्रह्मचर्य। अहिंसा की साधना के लिए उन्होंने मैत्री का विकास किया। उनसे सूक्ष्म जीवों की हिंसा भी असम्भव हो गई। वे न तो सजीव अन्न खाते, न सजीव पानी पीते और न रात्रिभोजन करते। सत्य की साधना के लिए वे ध्यान और भावना का अभ्यास करने लगे। मैं अकेला हूं- इस भावना के द्वारा उन्होंने अनासक्ति को साधा और उसके द्वारा आत्मा की उपलब्धि का द्वार खोला। ब्रह्मचर्य की साधना के लिए उन्होंने अस्वाद का अभ्यास किया। आहार के सम्बन्ध में उन्होंने विविध प्रयोग किए। फलस्वरूप सरस और नीरस भोजन में उनका समत्व सिद्ध हो गया। कुमार ने शरीर के ममत्व से मुक्ति पाली । अब्रह्मचर्य की आग अपने आप बुझ गई। कुमार की यह जीवनचर्या राजपरिवार को पसन्द नहीं थी। कभी-कभी सुपार्श्व और नंदिवर्द्धन कुमार की साधक-चर्या का हलका-सा विरोध करते। पर कुमार पहले ही अपनी स्वतंत्रता का वचन ले चुके थे। काल का चक्र अविराम गति से घूमता है। आकांक्षा की पूर्ति के क्षणों में हमें लगता है, वह जल्दी घूम गया। उसकी पूर्ति की प्रतीक्षा के क्षणों में हमें लगता है, वह कहीं रुक गया। महावीर को दो वर्ष का काल बहुत लम्बा लगा । आखिर लक्ष्यपूर्ति की घड़ी आ गयी। स्वतंत्रता सेनानी के पैर परतंत्रता के निदान की खोज में आगे बढ़ गए। १. आयारो, ९ । १ । ११-१५ ; आचारांगचूर्णि, पृ० ३०४ । २. आयारो, ९।१।११; आचारांगचूर्णि, पृ० ३०४ । ३. देखें, आयारो, ९४। ४. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २४९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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