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________________ स्वतन्त्रता का अभियान / १७ हैं। मैं चाहता हूं, अभी इस बात का अन्तिम निर्णय हो जाए।' ___'भैया! अन्तिम निर्णय सही है कि आप मेरे मार्ग में अवरोध न बनें,' कुमार ने बड़ी तत्परता से कहा। नंदिनवर्द्धन बोले, 'कुमार! यह कथमपि सम्भव नहीं है। मैं जानता हूं कि तुम्हारी अहिंसा तुम्हें घाव पर नमक डालने की अनुमति तो नहीं देगी।' नंदिवर्द्धन ने इतना कहा कि कुमार विवश हो गए। 'मुझे निष्क्रमण करना है। इसमें मैं परिवर्तन नहीं ला सकता । मैं महान् उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक यात्रा प्रारम्भ कर रहा हूं। इस कार्य में मुझे सहयोग चाहिए। फिर आप मुझे क्यों रोकना चाहते हैं? कुमार ने एक ही सांस में सारी बातें कह डालीं।' नंदिवर्द्धन जानते थे कि कुमार सदा के लिए यहां रुकने वाला नहीं है, इसलिए असम्भव आग्रह करने से कोई लाभ नहीं । उन्होंने कहा, कुमार! मैं तुम्हें रोकना चाहता हूं पर सदा के लिए नहीं।' 'फिर कब तक?' 'मैं चाहता हूं तुम माता-पिता के शोक-समापन तक यहां रहो, फिर अभिनिष्क्रमण कर लेना।' 'शोक कब तक मनाया जाएगा?' 'दो वर्ष तक। 'बहुत लम्बी अवधि है।' 'कुछ भी हो, इसे मान्य करना ही होगा।' सुपार्श्व भी नंदिवर्द्धन के पक्ष का समर्थन करने लगे। कुमार ने देखा, अब कोई चारा नही है। इसे मानना पड़ेगा पर मैं अपने ढंग से मानूंगा। कुमार ने कहा, 'एक शर्त पर मैं आपकी बात मान सकता हूं।' "वह क्या है,' दोनों एक साथ बोल उठे। 'घर में रहकर मुझे साधक का जीवन जीने की पूर्ण स्वतंत्रता हो तो मैं दो वर्ष तक यहां रह सकता हूं, अन्यथा नहीं।' उन्होंने कुमार की शर्त मान ली। कुमार ने उनकी बात को अपनी स्वीकृति दे दी। अभिनिष्क्रमण की चर्चा पर एक बार पटाक्षेप हो गया । विदेह-साधना कुमार वर्द्धमान के अंतस् में स्वतंत्रता की लौ प्रदीप्त हो चुकी थी। वह इतनी उद्दाम थी कि ऐश्वर्य की हवा का प्रखर झोंका भी उसे बुझा नहीं पा रहा था। कुमार घर की १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २४९ ;आचारांगचूर्णि पृ० ३०४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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