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वंदना / २६९
५. वणेसु यणंदणमाहु सेट्ठं, णाणेण सीलेणय भूतिपण्णे।' जैसे - वनों में नन्दनवन श्रेष्ठ है,
वैसे ही ज्ञान और शील में महावीर श्रेष्ठ हैं।। दाणाण सेठें अभयप्पयाणं, सच्चेसु या अणवजं वयंति। तवेसुवा उत्तम बंचभेरं, लोगुत्तमे समणे णायपुत्ते॥ जैसे - दानों में अभयदान,
सत्य में निरवद्य वचन. तप में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है,
वैसे ही श्रमणों में महावीर श्रेष्ठ हैं। ७. निव्वाणसेट्टा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि णाणी।
जैसे - धर्मों में निर्वाणवादी धर्म श्रेष्ठ हैं,
वैसे ही ज्ञानियों में महावीर श्रेष्ठ हैं। उनसे अधिक कोई ज्ञानी नहीं है। कोहं च माणंच तहेव मायं, लोभं चउत्थं अज्झत्तदोसा। एत्ताणि चत्ता अरहा महेसी,ण कुव्वई पाव ण कारवेइ॥
- भगवान् क्रोध, मान, माया और लोभ- इन चारों अध्यात्म दोषों को नष्ट कर अर्हत् हो चुके थे। वे पाप न करते थे और न करवाते थे। निंक देवपुत्र भगवान् महावीर का उपासक था। उसने भगवान् बुद्ध के सामने
भगवान् महावीर की स्तुति में यह गाथा कही - ९. जेगुच्छी निपको भिक्खु, चातुयाम सुसंवुतो। दिलृ सुतं च आचिक्, न हि नून किब्बिसी सिया।।
- पापों से घृणा करने वाले चतुर भिक्षु, चारों यामों से सुसंवृत रहने वाले, देखे-सुने को कहते हुए,
उनमें भला क्या पाप हो सकता है? १०. जयइ जगजीवजोणी-वियाणओजगगुरु जगाणंदो।
जगणाहो जगबंधू, जयइ जगपियामहो भगवं॥ -जगत् की जीव-योनियों को जानने वाले जगद्गुरु, जगत् को आनन्द देने वाले,
जगन्नाथ, जगबन्धु और जगत् पितामह भगवान् महावीर की जय हो। १. सूयगडो : १।६।१८ ।
४. सूयगडो : १ । ६ । २६ । २. सूयगडो : १।६। २३ ।
५. संयुक्तनिकाय, भाग १, पृ० ६५ । ३. सूयगडो:१।६।२४ ।
६. नंदी, गाथा १ । वंदनाकार-देववाचक ।
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