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जीवन का विहंगावलोकन / २६५
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३६. उच्चालइय णिहणिंसु। ___-कुछ लोग मखौल करते और भगवान् को उठाकर नीचे गिरा देते। ३७. अदुवा आसणाओखलइंसु।'
-भगवान् आसन लगाकर ध्यान करते। कुछ लोगों को बड़ा विचित्र लगता। वे आकर भगवान् का आसन भंग कर देते। भगवान् इन सबको वैसे सहन
करते मानो शरीर से उनका कोई सम्बन्ध न हो। समत्व या प्रेम ३८. पुढविं च आउकायं, तेउकायं च वाउकायं च।
पणगाइं बीय-हरियाई, तसकायं च सव्वसो णच्चा॥ एयाई संति पडिलेहे, चित्तमंताई से अभिण्णाय। परिवज्जियाण विहरित्था, इति संखाए से महावीरे॥ -भगवान् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, पनक, बीज, हरियाली और त्रस—इन
सबको चेतन-युक्त जानकर इन्हें किसी प्रकार क्लान्त नहीं करते थे। ३९. अविसाहिए दुवे वासे, सीतोदं अभोच्चा णिक्खंते।
-भगवान् गृहस्थ जीवन के अंतिम दो वर्षों में सजीव जल नहीं पीते थे।
उनके अन्तःकरण में करुणा या प्रेम का स्रोत प्रवाहित होने लग गया था। १०. अध्यात्म ४०. गच्छइ णायपुत्ते असरणाए।
-भगवान् कष्टों से बचने के लिए किसी की शरण में नहीं जाते थे। समयसमय पर उन्हें मनुष्य तिर्यञ्च आदि कष्ट देते। कुछ व्यक्ति उन्हें कष्ट से बचाने के लिए अपनी सेवाएं समर्पित करने का अनुरोध करते । पर भगवान् ऐसे हर अनुरोध को ठुकरा देते। उनका मत था कि किसी की शरण में रहकर अपने आपको नहीं पाया जा सकता। अध्यात्म दूसरों की शरण में जाने की स्वीकृति नहीं देता। अध्यात्म का पहला लक्षण है अपने आप में शरण की
खोज। ४१. एगत्तगए पिहियच्चे।
-भगवान् अकेले थे। उनका शरीर ढका हुआ था। भगवान् गृहस्थ जीवन में भी अकेले रहने का अभ्यास कर चुके थे।अध्यात्म सब के बीच रहने पर भी अपने आपको अकेला अनुभव करने की दृष्टि, मति और धृति देता है।
अध्यात्म का दूसरा लक्षण है- अकेलापन । अध्यात्म का तीसरा लक्षण है - १. आयारो :९।३।१२ ।
४. आयारो : ९।१ । ११ । २. आयारो:९।३।१२ ।
५. आयारो : ९।१।१०। ३. आयारो:९।१।१२, १३ ।
६. आयारो :९।१।११ ।
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