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६४ / श्रमण महावीर
हवाओं के चलने पर गर्म स्थानों को खोजते थे, संघाटियों में सिमटकर रहते थे, अग्नि तपते थे और किवाड़ बन्द कर बैठते थे, उस समय भगवान् खुले स्थान में रहकर ध्यान करते थे - न कोई आवरण और न कोई प्रावरण ।
सहिष्णुता
३०. कुक्कुरा तत्थ हींसिंसु णिवतिंसु ॥
अप्पे जणे णिवारेइ, लूसणए सुणए दसमाणे । छुछुकारंति आहंसु, समणं कुक्कुरा डसंतुत्ति ॥ एलिक्ख जणे भुज्जो, बहवे वज्जभूमि फरुसासी । लठ्ठेि गहाय णालीयं, समणा तत्थ एव विहरिंसु । एवं पि तत्थ विहरंता, पुट्ठ-पुव्वा अहेसि सुणएहिं । संलुंचमाणा सुणएहिं, दुच्चरगाणि तत्थ लाढेहिं ॥ '
- लाढ देश में भगवान् को कुत्ते काटने आते । कुछ लोग कुत्तों को हटाते । कुछ लोग उन्हें काटने के लिए प्रेरित करते। उस प्रदेश में घूमने वाले श्रमण लाठी रखते, फिर भी उन्हें कुत्ते काट खाते । भगवान् के पास न लाठी थी, न कोई बचाव। अपने आत्मबल के सहारे वहां परिव्रजन कर रहे थे ।
३१. अह गामकंटए भगवं, ते अहियासए अभिसमेच्चा ।
- भगवान् को लोग गालियां देते । भगवान् उन्हें कर्मक्षय का हेतु मानकर सह लेते ।
३२. हयपुव्वो तत्थ दंडेण, अदुवा मुट्ठिणा अदु कुंताइ-फलेणं ।
अदु लेलुणा कवालेणं, हंता - हंता बहवे कंदिंसु ॥
- लाढ देश में कुछ लोग भगवान् को दंड, मुष्टि, भाले, फलक, ढेले और कपाल से आहत करते थे ।
३३. मंसाणि छिन्नपुव्वाईं।"
- कुछ लोग भगवान् के शरीर का मांस काट डालते ।
३४. उट्ठभंति एगया कार्यं ।
- कुछ लोग भगवान् पर थूक देते ।
३५. अहवा पंसुणा अवकिरिंसु ।
- कुछ लोग भगवान् पर धूल डाल देते ।
आयारो : ९ । ३ । ३-६ ।
आयारो : ९ । ३ । ७ । आयारो : ९ । ३ । १० ।
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४. आयारो : ९ । ३ । ११ । ५. आयारो : ९ । ३ । ११ । ६. आयारो : ९ । ३ । ११ ।
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