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________________ २६६ / श्रमण महावीर संवरण - ढांकना। भौतिक दृष्टि वाला व्यक्ति अपनी शारीरिक प्रचेष्टाओं, इन्द्रियों और मन को ढंककर नहीं रख सकता। ४२. से अहिण्णायदंसणे संते। -भगवान् का दर्शन समीचीन था। शान्ति उनके कण-कण में विराजमान थी। अध्यात्म का चौथा लक्षण है - सम्यग् दर्शन। भगवान् विश्व के सभी पदार्थों, विचारों और घटनाओं को अनेकान्तदृष्टि से देखते थे। इसलिए सत्य उन्हें सहजभाव से उपलब्ध हो जाता। जिसे सत्य उपलब्ध होता है, उसे अशान्ति नहीं होती। अध्यात्म का पांचवां लक्षण है - शान्ति । ४३. राइं दिवं पिजयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति। -भगवान रात और दिन- हर क्षण जागरूक रहते थे।अप्रमाद (सतत जागरण) अध्यात्म का छठा लक्षण है। अध्यात्म का सातवां लक्षण है - समाधि । ११. धर्म की मौलिक आज्ञाएं ४४. से णिच्च णिच्चेहि समिक्ख पण्णे, दीवे व धम्म समियं उदाह। -भगवान् ने कैवल्य प्राप्त कर विश्व को नित्य और अनित्य-दोनों दृष्टियों से देखा और धर्म का प्रतिपादन किया। उस धर्म की मूल आज्ञाएं इस प्रकार ४५. सव्वे पाणा ण हंतव्वा। -किसी प्राणी को आहत मत करो। ४६. सव्वे पाणा ण अज्जावेयव्वा। _ -किसी प्राणी पर शासन मत करो। उसे पराधीन मत करो। ४७. सव्वे पाणाण परिघेतव्वा। _ -किसी प्राणी का परिग्रह मत करो -- उन्हें दास-दासी मत बनाओ ४८. सव्वे पाणा ण परितावेयव्वा।। -किसी प्राणी को परितप्त मत करो। ४९. सव्वे पाणा ण उद्दवेयव्वा। -किसी प्राणी के प्राणों का वियोजन मत करो। ५०. कोहोणसेवियव्वो। -क्रोध का सेवन मत करो। १. आयारो : ९।१।११ । २. आयारो : ९।२।४ । ३. सूयगडो : १।६।४ । ४. आयारो : ४।१ । ५. आयारो : ४।१ । ६. आयारो : ४।१। ७. आयारो : ४।१ । ८. आयारो :४।१ । ९. पण्हावागरणाई:७११८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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