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________________ २६२ / श्रमण महावीर लेते। वे निरन्तर जागरूक रहने का प्रयत्न करते। साढ़े बारह वर्षों में केवल कुछेक मिनटों की नींद लेना सामान्य प्रकृति के अनुकूल नहीं लगता। पर योगी के लिए यह असम्भव नहीं है। जो योगी अपनी चेतना को चिरजागृत कर लेता है, जिसका सूक्ष्म शरीर सक्रिय हो जाता है, उसको नींद की आवश्यकता नहीं होती है या कम होती है। शारीरिक परिवर्तन से भी कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं। आरमाण्ड जैक्विस लुहरवेट का जन्म ईस्वी सन् १७९१ में फ्रांस में हुआ था। वे दो वर्ष के थे तब उनके सिर पर कोई वस्तु गिरी। चोट गहरी लगी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वे कई दिनों तक मूर्च्छित रहे। कुछ दिनों के उपचार के बाद उनकी चेतना वापस आई। चोट से कोई शारीरिक परिवर्तन हो गया। उनकी नींद समाप्त हो गई। उन्हें नींद लाने वाली औषधियां दी गई, पर नींद नहीं आई। नींद शरीर की सामान्य प्रकृति है। किन्तु चेतना की चिर-जागृति और शारीरिक परिवर्तन के द्वारा उस प्रकृति में परिवर्तन होना सम्भावित है और काल के अविरल प्रवाह में समय-समय पर ऐसा हुआ भी है। ६. आहार १७. मायण्णे असणपाणस्स। - भगवान् भोजन और पानी की मात्रा को जानते थे और उनका मात्रा के अनुरूप ही प्रयोग करते थे। १८. ओमोयरियं चाएति अपुढेंवि भगवं रोगेहि। -भगवान् स्वस्थ होने पर भी कम खाते थे। रोग से स्पृष्ट मनुष्य अधिक नहीं खा सकते । भगवान् रुग्ण नहीं थे, फिर भी अधिक नहीं खाते थे। १९. नाणुगिद्धे रसेसु अपडिन्ने। -भगवान् सरस भोजन में आसक्त नहीं थे। २०. अदु जावइत्थ लूहेणं, ओयण-मंथु-कुम्मासेणं। -भगवान् भोजन के विविध प्रयोग करते थे। एक बार उन्होंने रूक्ष भोजन का प्रयोग किया। वे कोरे ओदन, मंथु और कुल्माष खाते रहे। २१. एयाणि तिन्नि पडिसेवे, अट्ठ मासे य जावए भगवं। -भगवान् ने आठ मास तक उक्त तीन वस्तुओं के आधार पर जीवन चलाया। २२. अपिइत्थ एगया भगवं, अद्धमासं अदुवा मासं पि। १. आयारो :९।२।२० । २. आयारो :९।४।१ । ३. आयारो :९।१।२० । ४. आयारो :९।४।४। ५. आयारो:९।४।५ । ६. आयारो:९।४।५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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