________________
जीवन का विहंगावलोकन / २६१
८. अणुत्तरं झाणवरं झियाइ।
-भगवान् ने सत्य की प्राप्ति के लिए ध्यान किया। ९. अदु पोरिसिं तिरियभित्तिं, चक्खुमासज्ज अंतसो झाई।
-भगवान् ने प्रहर-प्रहर तक तिरछी भित्ति पर आंख टिकाकर ध्यान किया। १०. मीसीभावं पहाय से झाई।
-भगवान् जन-संकुल स्थानों को छोड़कर एकांत में ध्यान करते थे। ११. अविझाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं।
उड्ढमहेतिरियंच, लाए झायइ समाहिमपडिन्ने॥ -भगवान् विविध आसनों में स्थिर होकर ध्यान करते थे। वे ऊर्ध्वलोक,
अधोलोक और तिर्यक्लोक को ध्येय बनाकर करते थे। ४. मौन १२. पुट्ठो विणाभिभासिंसु।
-भगवान् पूछने पर भी प्रायः नहीं बोलते थे। १३. रीयइ माहणे अबहुवाई।
-भगवान् बहुत नहीं बोलते थे। अनिवार्यता होने पर कुछेक शब्द बोलते
थे।
१४. अयमंतरंसि को एत्थ? अहमंसित्तिभिक्ख आहट्ट।
___-यहां भीतर कौन है? ऐसा पूछने पर भगवान् उत्तर देते- 'मैं भिक्षु हूं।' ५. निद्रा १५. णिमिणो पगामाए,सेवइ भगवं उट्ठाए।
जग्गावती य अप्पाणं, ईसिं साई यासी अपडिन्ने।। -भगवान् विशेष नींद नहीं लेते थे। वे बहुत बार खड़े-खड़े ध्यान करते तब भी अपने आपको जागृत रखते थे। वे समूचे साधना काल में बहुत थोड़े
सोए। साढ़े बारह वर्षों में मुहूर्त भर भी नहीं सोए। १६. णिक्खम्म एगयाराओ, बहिं चंकमिया मुहत्तागं।'
-कभी-कभी नींद सताने लगती तब भगवान् चंक्रमण कर उस पर विजय पा १. सूयगडो :१।६।१६ ।
६. आयारो : ९।२।१०। २. आयारो : ९।१।५।
७. आयारो :९।२।१२ ३. आयारो : ९।१।७।
८. आयारो : ९।२।५ । ४. आयारो : ९॥ ४ ॥ १४ ॥
९. आयारो :९।२।६। ५. आयारो :९।१७।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org