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________________ ४८ जीवन का विहंगावलोकन १. कर्तृत्व के मूलस्रोत १. से वीरिएणं पडिपुण्णवीरिए। -भगवान् वीर्य से परिपूर्ण थे। २. खेयण्णे से कुसले मेहावी। --भगवान् आत्मज्ञ, कुशल और मेधावी थे। ३. अणंतणाणी य अणंतदंसी। ___ -भगवान् अनन्तज्ञानी और अनन्तदर्शी थे। ४. गंथा अतीते अभए अणाऊ।' -भगवान् सब ग्रंथों से अतीत, अभय और अनायु थे। ५. वइरोयणिंदे व तमं पगासे।' __-भगवान् सूर्य की भांति अंधकार को प्रकाश में बदल देते थे। २. श्रमण जीवन का ज्ञानपूर्वक स्वीकार ६. किरयाकिरियं वेणइयाणुवायं, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं। से सव्ववायं इह वेयइत्ता, उवट्ठिए सम्म सदीहरायं॥ -भगवान् क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद- इन वादों को जानकर फिर मोक्ष-साधना में उपस्थित हुए। साधना का संकल्प अवस्थित हो जाता है, उसका भंग नहीं हो सकता। साधना के जिस तल पर पहुंच हो जाती है, उसके नीचे नहीं उतरा जा सकता, प्रगति के बाद प्रतिगति नहीं हो सकती। इस सिद्धान्त के अनुसार भगवान् आजीवन मोक्ष के लिए समर्पित हो गए। ३. तप और ध्यान ७. उवहाणवं दुक्खखयट्टयाए। -भगवान् ने पूर्व-अर्जित दुःखों को क्षीण करने के लिए तपस्या की। १. सूयगडो : १।६।९। ५. सूयगडो : १।६।६। २. सूयगडो :१।६।३। ६. सूयगडो :१।६।२७ । ३. सूयगडो :१६६।३ । ७. सूयगडो : १।६।२८ । ४. सूयगडो :१।६।५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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