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निर्वाण
भगवान् महावीर जितने अंतर में सुन्दर थे, उतने ही बाहर में सुन्दर थे। उनका आंतरिक सौन्दर्य जन्म-लब्ध था और साधना ने उसे शिखर तक पहुंचा दिया। उनका शरीरिक सौन्दर्य प्रकृति-प्राप्त था और स्वास्थ्य ने उसे शतगुणित और चिरंजीवी बना दिया। भगवान् अपने जीवन-काल में बहुत स्वस्थ रहे। उन्होंने अपने जीवन में एक बार चिकित्सा की। वह भी किसी रोग के कारण नहीं की। गोशालक की तैजस शक्ति से उनका शरीर झुलस गया था, तब उन्होंने औषधि का प्रयोग किया। इस घटना को छोड़कर उन्होंने कभी औषधि नहीं ली। उनके स्वास्थ्य के मूल आधार तीन थे -
१. आहार-संयम। २.शरीर और आत्मा के भेदज्ञान की सिद्धि। ३. राग-द्वेष की ग्रन्थि का विमोचन।
भोजन की अधिक मात्रा, शारीरिक और मानसिक तनाव - ये शरीक को अस्वस्थ बनाते हैं। भगवान् इन सबसे मुक्त थे, इसलिए वे सदा स्वस्थ रहे।
भगवान् गृहवास में भी स्वाद पर विजय पा चुके थे। उनके भोजन की दो विशेषताएं थीं-मित मात्रा और मित वस्तुएं । भगवान् के साधनाकाल में उपवास के दिन
अधिक हैं, भोजन के दिन कम । इन उपवासों ने उनके शरीर में रासायनिक परिवर्तन कर दिया। उपवास की लम्बी शृंखला के कारण उनका शरीर कृश अवश्य हुआ, किन्तु उनकी रोग-निरोधक क्षमता इतनी बढ़ गई कि कोई रोग उस पर आक्रमण नहीं कर सका। आयुर्वेद के आचार्यों ने लंघन को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया है। अश्विनीकुमार योगी का रूप बनाकर घूम रहे थे। वे वाग्भट के पास पहुंच गए। उन्होंने वाग्भट से पूछा - ____ 'वैद्य! मुझे उस औषधि का नाम बताओ जो भूमि और आकाश में उत्पन्न नहीं है, पथ्य, रसशून्य और सर्वशास्त्र-सम्मत है।"
वाग्भट ने उत्तर की भाषा में कहा -
'आयुर्वेद के आचार्यों ने लंघन को परम औषध बतलाया है। वह भूमि और आकाश में उत्पन्न नहीं हैं, पथ्य, रसशून्य और सर्वशास्त्र सम्मत है।२
१. अभूमिजमनाकाशं, पथ्यं रसविवर्जितम् ।
सम्मतं सर्वशास्त्राणां, वद वैद्य! किमौषधम्? २. अभूमिजमनाकाशं, पथ्यं रसविवर्जितम्
पूर्वाचार्य: समाख्यातं, लंघनं परमौषधम् ॥
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