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संघ-भेद / २४५
स्वतंत्र विहार करने लगा। कुछ शिष्य जमालि के साथ रहे और कुछ उसे छोड़ भगवान् के पास चले गए।
जमालि स्वस्थ हो गया। वह श्रावस्ती से प्रस्थान कर चम्पा में आया। भगवान् उसी नगरी में पूर्णभद्र चैत्य में विहार करते थे। जमालि भगवान् के पास आया। भगवान् के सामने खड़ा रहकर वह बोला - 'आपके अनेक शिष्य अ-केवली (असर्वज्ञ) रहकर अकेवली विहार कर रहे हैं, किन्तु मैं अ-केवली विहार नहीं कर रहा हूँ। मैं केवली (सर्वज्ञ) होकर केवली-विहार कर रहा हूँ।'
जमालि की गर्वोक्ति सुनकर भगवान् के प्रधान शिष्य गौतम ने कहा - 'जमालि! केवली का ज्ञान पर्वत, स्थम्भ या स्तूप से आवृत नहीं होता । तुम यदि केवली हो, तुम्हारा ज्ञान यदि अनावृत है, तो मेरे इन दो प्रश्नों का उत्तर दो'--
१. लोक शाश्वत है या अशाश्वत? २. जीव शाश्वत है या अशाश्वत?
जमालि गौतम के प्रश्न सुन शंकित हो गया। वह गौतम के आशय को समझने का प्रयत्न करता रहा पर वह समझ में नहीं आया, तब मौन रहा।
भगवान् ने जमालि को सम्बोधित कर कहा - 'जमालि! मेरे अनेक शिष्य ऐसे हैं जो अ-केवली होते हुए भी इन प्रश्नों का उत्तर देने में समर्थ हैं। फिर भी वे तुम्हारी भाँति अपने आपको केवली होने की घोषणा नहीं करते।' ___ 'जमालि! लोक शाश्वत है। यह लोक कभी नहीं था, कभी नहीं है और कभी नहीं होगा-ऐसा नहीं है। इसलिए मैं कहता हूँ, यह लोक शाश्वत है।' ___ 'जमालि! यह लोक विविध कालचक्रों से गुजरता है, इसलिए मैं कहता हूं कि यह लोक अशाश्वत है।
'जमालि! जीव कभी नहीं था, कभी नहीं है और कभी नहीं रहेगा - ऐसा नहीं है। इसलिए मैं कहता हूं, यह जीव शाश्वत है।'
'जमालि! यह जीव कभी मनुष्य होता है, कभी तिर्यंच, कभी देव और कभी नारक। यह विविध योनिचक्रों में रूपांतरित होता रहता है। इसलिए मैं कहता हूं, यह जीव अशाश्वत है।'
'जमालि! तुम नय के सिद्धांत को नहीं जानते इसलिए तुम नहीं बता सके कि लोक शाश्वत है या अशाश्वत। जीव शाश्वत है या अशाश्वत?'
'जमालि! तुम नय के सिद्धांत को नहीं जानते, इसलिए तुम क्रियमाण कृत के सिद्धान्त में दिग्मूढ़ हो गए।'
'जमालि! मैंने दो नयों का प्रतिपादन किया है -' १. निश्चयनय - वास्तविक सत्यस्पर्शी दृष्टिकोण। २. व्यवहारनय - व्यावहारिक सत्यस्पर्शी दृष्टिकोण ।
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