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जीवनवृत्त: कुछ चित्र, कुछ रेखाएं / ११
माता-पिता की समाधि-मृत्यु
महावीर के मन में अचानक उदासी छा गई, जैसे उज्ज्वल प्रकाश के बाद नीले नभ में अकस्मात् रात उतर आती है। वे कारण की खोज में लग गए। वह पूर्वसूचना थी महाराज सिद्धार्थ और देवी त्रिशला के देहत्याग की । कुमार के मन में अन्त:प्रेरणा जागी । वे तत्काल सिद्धार्थ के निसद्या-कक्ष में गए। वहां सिद्धार्थ और त्रिशला - दोनों विचारविमर्श कर रहे थे । कुमार ने देखा, वे किसी गंभीर विषय पर बात कर रहे हैं इसलिए उनके पैर द्वार पर ही रुक गए। सिद्धार्थ ने कुमार को देखा और अपने पास बुला लिया । वे बोले, 'कुमार! तुम ठीक समय पर आए हो। हमें तुम्हारे परामर्श की जरूरत थी । हम तुम्हें बुलाने वाले ही थे । '
कुमार ने प्रणाम कर कहा, 'मैं आपकी कृपा के लिए आभारी हूं। आप आदेश दें, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?'
'कुमार! तुम देख रहे हो, हमारी अवस्था परिपक्व हो गई है। पता नहीं कब मृत्यु का आमंत्रण आ जाए। वह हमें निमंत्रण दे, इससे पहले हम उसे निमंत्रण दें, क्या यह अच्छा नहीं होगा ? श्रमण परम्परा ने मृत्यु को आमंत्रित करने में सदा शौर्य का परिचय दिया है। भगवान् पार्श्व ने मृत्यु की तैयारी करने का पाठ पढ़ाया है। हम अनुभव करते हैं कि उस पाठ को क्रियान्वित करने का उचित अवसर हमारे सामने उपस्थित है।'
कुमार का मन इस आकस्मिक चर्चा से द्रवित हो गया। माता-पिता का वियोग उनके लिए असह्य था । वे बोले, 'पिताश्री ! इस प्रकार की बात सुनना मुझे पंसद नहीं है । ' 'कुमार! यह पसंद और नापसंद का प्रश्न नहीं है। यह प्रश्न है यथार्थ का । जो होना है, वह होगा ही । उसको रोका नहीं जा सकता। फिर उसे नकारने का अर्थ क्या होगा ?" 'पिता श्री ! इस सत्य को मैं जानता हूं । पर सत्य का सूर्य क्या मोह के बादलों से आच्छन्न नहीं होता? मैं आपकी मृत्यु का नाम भी सुनना नहीं चाहता। फिर मैं उसकी तैयारी का परामर्श कैसे दे सकता हूं?"
'कुमार! तुम तत्त्वदर्शी हो, सत्य के गवेषक हो, अभय हो, सब कुछ हो । पर पितृस्नेह और मातृस्नेह से मुक्त नहीं हो। क्या इस दुर्बलता से ऊपर नहीं उठना है ?" 'पिताश्री ! मैं आप और मां के स्नेह से अभिभूत हूं। इसे आप दुर्बलता समझें या कुछ भी समझें ।'
सिद्धार्थ ने वार्ता को मोड़ देते हुए कहा, 'क्या तुम नहीं चाहते कि हमारी समाधि
मृत्यु हो ?'
'यह कैसे हो सकता है ? '
'क्या इसके लिए हमें शरीर और मन को पूर्णरूपेण तैयार नहीं करना चाहिए । ' कुमार ने साहस बटोरकर कहा, 'अवश्य करना चाहिए ।'
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