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२३८ / श्रमण महावीर
श्रेणिक हमारा छोटा शत्रु है । वह चोर को बन्दी बना सकता है, पर अचोर नहीं बना सकता। महावीर चोर को अचार बना देते हैं। उनका प्रयत्न हमारे कुलधर्म पर कुठाराघात है । इसलिए मैं कहता हूं कि तुम उनसे बचकर रहना । न उनके पास जाना और न उनकी वाणी सुनना ।'
रोहिणेय ने पिता का आदेश शिरोधार्य कर लिया। लोहखुरो की अंतिम इच्छा पूरी हुई। उसने अपनी क्रूरता के साथ जीवन से अंतिम विदा ले ली। रोहिणेय के पैर पिता से आगे बढ़ गए। उसने कुछ विद्याएं प्राप्त कर लीं और राजगृह पर अपना पंजा फैलाना शुरू कर दिया। इधर महावीर के असंग्रह, अचौर्य और अभय के उपदेश चल रहे थे, उधर चोर - निग्रह के लिए महामात्य अभयकुमार के नित नए अभियान चल रहे थे। फिर भी राजगृह की जनता चोरी के आतंक से भयभीत हो रही थी। चोरी पर चोरी हो रही थी । बड़े-बड़े धनपति लूटे जा रहे थे। आरक्षीदल असहाय की भांति नगर, पर्वत और जंगल की खाक छान रहा था । पर चोर पकड़ में नहीं आ रहा था ।
तस्कर रोहिणेय के पास गगन-गामिनी पादुकाएं थीं और वह रूप - परावर्तनी विद्या को जानता था । वह कभी -कभी आरक्षीदल के सामने उपस्थित हो जाता और परिचय भी दे देता, पर पकड़ने का प्रयत्न करने से पूर्व ही वह रूप बदल लेता या आकाश में उड़ जाता । सब हैरान थे । राजा हैरान, मंत्री हैरान, आरक्षीदल हैरान और नगरवासी हैरान । अकेला रोहिणेय सबकी आंखों में धूल झोंक रहा था ।
दिन का समय था । रोहिणेय एक सूने घर में चोरी करने घुसा। वह तिजोरी तोड़ने का प्रयत्न कर रहा था । पड़ौसियों को पता चल गया। थोड़ी देर में लोग एकत्र हो गए। रोहिणेय ने कोलाहल सुना । वह तत्काल वहां से दौड़ गया। जल्दी में गगन-गामिनी पादुकाएं वहां भूल गया। वह जिस मार्ग से दौड़ा, उसी के पास भगवान् महावीर प्रवचन कर रहे थे । वह भगवान् की वाणी सुनना नहीं चाहता था। एक कुशल चोर चोरी का खण्डन करने वाले व्यक्ति की वाणी कैसे सुने ? पिता के आदेश पालन का भी प्रश्न था । उसने भगवान् के प्रवचन - स्थल के पास पहुंचते ही गति तेज कर दी और कानों में अंगुलियां डाल लीं। पर नियति को यह मान्य नहीं था। उसी समय उसके दाएं पैर में एक तीखा कांटा चुभा । उसके पैर लड़खड़ाने लगे। गति मंद हो गई। उसे भय था कि कुछ लोग पीछा कर रहे हैं। कांटा निकाले बिना तेज दौड़ना संभव नहीं रहा। उसे निकालने के लिए कानों से अंगुलियां हटाने पर महावीर की वाणी सुनने का खतरा था। उसने दो क्षण सोचा। वह पीछे का खतरा मोल लेना नहीं चाहता था । उसने कानों से अंगुलियां हटाकर कांटा निकाला। उस समय भगवान् देवता के बारे में चर्चा कर रहे थे - 'देवता के नयन अनिमिष होते हैं और उनके पैर भूमि से चार अंगुल ऊपर रहते हैं ।' भगवान् के ये शब्द उसके कानों में पड़ गए। वह फिर कानों में अंगुलियां डाल दौड़ा। महावीर के शब्दों को
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