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२३६ / श्रमण महावीर
चुरा लाया और अब डर के मारे ध्यान का स्वांग रच रहा है। कोतवाल ने उसे बंदी बना राजा के सामने प्रस्तुत किया। राजा ने देखा - यह राजकुमार वारिषेण है। यह अपनी मां काहार कैसे चुरा सकता है? राजा समझ नहीं सका। पर वह करे क्या ? कोतवाल उसी को चोर सिद्ध कर रहा था । साक्ष्य भी यही कह रहे थे कि हार इसी ने चुराया है राजा धर्म-सकंट में फंस गया। एक ओर अपना प्रिय पुत्र और दूसरी ओर न्याय । तराजू के एक पलड़े में पितृत्व था और दूसरे पलड़े में न्याय का संरक्षण। न्याय का पलड़ा भारी हुआ । राजा ने हृदय पर पाषाण रखकर वारिषेण को मृत्युदंड दे दिया । वधक उसे मारने के लिए श्मशान में ले गए।
वारिषेण महावीर की श्मशान - प्रतिमा को साध चुका था। उसके मन में भय की एक रेखा भी नहीं उभरी। वह जिस शांत भाव से बन्दी बनकर आया था उसी शांतभाव से मृत्यु का वरण करने के लिए चला गया। इन दोनों स्थितियों में उसका ध्यान भंग नहीं हुआ । उसका मनोबल इतना बढ़ गया कि वधक हतप्रभ - सा हो गया । उसका हाथ नहीं उठ रहा था वध के लिए, फरसा तो उठ ही नहीं रहा था। जो भी वधक वारिषेण के सामने आया वह हतप्रभ होकर खड़ा रह गया । श्रेणिक को इसकी सूचना मिली। वह वारिषेण के पास पहुंचा। उसने कहा - 'पुत्र ! मुझे विश्वास था कि तुम चोरी नहीं कर सकते। मैं परिचित हूं तुम्हारी धार्मिकता से । पर मैं क्या करूं, न्याय का प्रश्न था । तुम जानते हो न्याय अन्धा और बहरा होता है। उसमें सचाई को देखने और सुनने की क्षमता नहीं होती। वह देखता और सुनता है साक्ष्य को । साक्ष्य बता रहे थे कि हार तुमने चुराया है । तुम्हारी सचाई ने तुम्हें निर्दोष प्रमाणित कर दिया । सत्य का वध नहीं किया जा सकता - महावीर के इस सिद्धान्त ने तुम्हें अमर बना दिया है। राजगृह का हर व्यक्ति आज तुम्हारी अमर गाथा गा रहा है, पुत्र ! मुझे क्षमा करना । यदि मैं तुम्हें मृत्युदण्ड नहीं देता तो तुम मृत्यु के द्वार पर पहुंचकर अमर नहीं बनते। चलो, अब मैं तुम्हें लेने आया हूं ।'
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'आप जाएं, मैं नहीं जाऊंगा।'
'तो कहां जाओगे ?'
'अपने घर में ।'
'क्या राजगृह का प्रासाद तुम्हारा घर नहीं है ? '
'सचमुच नहीं है।'
'कब से?"
'मैं शमशान में ध्यान कर रहा था। मुझ पर चोरी का आरोप आया। आपने मुझे दोषी ठहराया। मैंने निश्चय किया कि यदि मैं इस आरोप से मुक्त हुआ तो भगवान् महावीर की शरण में चला जाऊंगा। इसलिए राजगृह का प्रासाद अब मेरा घर नहीं है ।
'क्या माता-पिता को ऐसे ही छोड़ दोगे?"
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