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जीवनवृत्त : कुछ चित्र, कुछ रेखाएं / ९ 'कुमार वर्द्धमान बहुत यशस्वी, मनस्वी और सुन्दर हैं। मैं उनके साथ यशोदा का परिणय चाहती हूं।'
'मेरी भी यही इच्छा है, सद्यस्क नहीं किन्तु दीर्घकालिक। मैं तुम्हारी भावना जानकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि हम बाहर से ही एक नहीं है, भीतर से भी एक हैं।'
जितशत्रु ने दूत भेजकर अपना संदेश सिद्धार्थ तक पहुँचा दिया।
सिद्धार्थ और त्रिशला - दोनों को इस प्रस्ताव से प्रसन्नता हुई। उन्होंने इसे कुमार के सामने रखा। कुमार ने उसे अस्वीकार कर दिया। वे बचपन से ही अनासक्त थे। वे ब्रह्मचारी जीवन जीना चाहते थे।
माता-पिता ने विवाह करने के लिए बहुत आग्रह किया। वे माता-पिता का बहुत सम्मान करते थे और माता-पिता का उनके प्रति प्रगाढ़ स्नेह था। वे एक दिन भी वर्द्धमान से विलग रहना पसन्द नहीं करते थे। वर्द्धमान को इस स्नेह की स्पष्ट अनुभूति थी। इसी आधार पर उन्होंने संकल्प किया था 'माता-पिता के जीवनकाल में मैं मुनि नहीं बनूंगा।'
वर्द्धमान में मुनि बनने की भावना और क्षमता-दोनों थी। ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। इसे वे बहुत महत्व देते थे। यह उनके ब्रह्मचर्य को प्रतिष्ठा देने के भावी प्रयत्नों से ज्ञात होता है। मुक्ति का अन्तर्द्वन्द्व
. कुछ लोग जागते हुए भी सोते हैं और कुछ लोग सोते हुए भी जागते हैं। जिनका अन्त:करण सुप्त होता है, वे जागते हुए भी सोते हैं। जिनका अन्तःकरण जागृत होता है, वे सोते हुए भी जागते हैं।
कुमार वर्द्धमान सतत जागृति की कक्षा में पहुंच चुके थे। गर्भकाल में ही उन्हें अतीन्द्रिय ज्ञान उपलब्ध था। उनका अंत:करण निसर्ग चेतना के आलोक से आलोकित था। भोग और ऐश्वर्य उनके पीछे-पीछे चल रहे थे, पर वे उनके पीछे नहीं चल रहे थे।
एक दिन कुमार वर्द्धमान आत्म-चिन्तन में लीन थे। उनका निर्मल चित्त अन्तर की गहराई में निमग्न हो रहा था। वे स्थूल की परतों को पार कर सूक्ष्म लोक में चले गए। उन्हें पूर्वजन्म की स्मृति हो आयी। उन्होंने देखा, जीवन की शृंखला कहीं विच्छिन्न नहीं है। अतीत के अनन्त में सर्वत्र उसके पदचिह्न अंकित हैं।
अतीत की कुछ घटनाओं ने कुमार के मन पर बहुत असर डाला। कुछ समय के लिए वे चिंतन की गहराई में खो गए। १. श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार कुमार वर्द्धमान माता-पिता के स्नेह के सामने झुक गए। उन्होंने विवाह कर लिया।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार कुमार वर्द्धमान ने विवाह का अनुरोध ठकरा दिया। वे जीवनभर ब्रह्मचारी रहे। २. आवश्यकनियुक्ति गाथा ७१ ।
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