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________________ बौद्ध साहित्य में महावीर / २२३ देखें - चित्र गृहपति कितना टेढ़ा है, शठ है, कपटी है।' 'भन्ते ! अभी तो आपने कहा था कि चित्र कितना सीधा है, सच्चा है और निष्कपट है और अभी आप कहते हैं कि वह कितना टेढ़ा है, शठ और कपटी है। भन्ते! यदि आपकी पहली बात सच है तो दूसरी बात झूठ और यदि दूसरी बात सच है पहली बात झूठ।' भगवान् महावीर सामयिक समस्याओं के प्रति भी बहुत जागरूक थे। उन्होंने मुनि के लिए माधुकरी वृत्ति का प्रतिपादन किया। वे नहीं चाहते थे कि कोई मुनि गृहस्थ के लिए भार बने। बौद्ध भिक्षु निमंत्रित भोजन करते थे। इसलिए अकाल के समय में उनका समुदाय कठिनाई भी उपस्थित करता था। भगवान् महावीर के उपासक असिबन्धकपुत्र ने इस ओर संकेत किया था - "एक समय भगवान् बुद्ध कौशल में चारिका करते हुए बड़े भिक्षु-संघ के साथ नालन्दा पहुंचे। वहां प्रावारिक आम्रवन में ठहरे। उस समय नालन्दा में दुर्भिक्ष था। लोगों के प्राण निकल रहे थे। मरे हुए लोगों की उजली-उजली हड्डियां विकीर्ण पड़ी हुई थीं। लोग सूखकर सलाई बन गये थे। उस समय निग्गंठ नातपुत्त अपनी बड़ी मण्डली के साथ नालन्दा में ठहरा हुआ था।' तब नातपुत्त का श्रावक असिबन्धकपुत्र ग्रामणी वहां गया और अभिवादन कर एक ओर बैठ गया। नातपुत्त ने कहा – 'ग्रामणी! तुम जाकर श्रमण गौतम के साथ वाद करो, इससे तुम्हारा बड़ा नाम होगा।' 'भंते! इतने महानुभाव श्रमण गौतम के साथ हैं मैं कैसे वाद करूं?' 'ग्रामणी ! जहां श्रमण गौतम है, वहां जाओ और बोलो - 'भन्ते! भगवान् अनेक प्रकार से कुलों के उदय, रक्षा और अनुकम्पा का वर्णन करते हैं न?' ग्रामणी ! यदि श्रमण गौतम कहेगा कि हां ग्रामणी ! बुद्ध अनेक प्रकार के कुलों के उदय, रक्षा और अनुकम्पा का वर्णन करते हैं तो तुम कहना - भन्ते! भगवान् इस दुर्भिक्ष में इतने बड़े संघ के साथ चारिका क्यों कर रहे हैं? क्यों कुलों के नाश और अहित के लिए भगवान् तुले हैं?' 'ग्रामणी ! इस प्रकार दोतरफा प्रश्न पूछे जाने पर श्रमण गौतम न उगल सकेगा और न निगल सकेगा।' 'भन्ते! बहुत अच्छा कहकर असिबन्धकपुत्र ग्रामणी वहां से चलकर भगवान् बुद्ध के पास आया। नमस्कार कर एक ओर बैठ गया। कुछ क्षणों बाद बोला - भन्ते! भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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