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________________ २२४ / श्रमण महावीर न?' अनेक प्रकार के कुलों के उदय, रक्षा और अनुकम्पा का वर्णन करते हैं, 'हां, ग्रामणी ! करते हैं । ' 'भन्ते ! तो भगवान् इस दुर्भिक्ष में इतने बड़े संघ के साथ चारिका क्यों करते हैं? क्यों कुलों के नाश और अहित के लिए भगवान् तुले हैं ? " भगवान् महावीर लोक को सान्त और अलोक को अनन्त प्रतिपादित करते थे । पिटक साहित्य से इस बात की पुष्टि होती है । दो लोकायति ब्राह्मण भगवान् के पास आए और अभिवादन कर पूछा- भन्ते ! पूरणकश्यप सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, निखिल ज्ञान दर्शन का अधिकारी है। वह मानता है कि मुझे चलते, खड़े रहते, सोते, जागते भी निरंतर ज्ञान दर्शन उपस्थित रहता है । वह कहता है - मैं अनन्त ज्ञान से अनन्त लोक को जानता - देखता हूं । भन्ते ! निग्गंठ नागपुत्त भी ऐसे ही कहता है । वह भी कहता है, मैं अपने अनन्त ज्ञान से अलोक को देखता - जानता हूं। र-विरोधी ज्ञानवादों में हे गौतम! कौन-सा सत्य है और कौन- -सा असत्य ? २ इस परस्पर १. संयुक्तनिकाय, भाग २, पृ० ५८५-५८६ । १. अंगुत्तरनिकाय ९ । ४ । ७ के आधार पर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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