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२१८ / श्रमण महावीर पिता के जीवित काल में दीक्षित नहीं होऊंगा।" माता-पिता के प्रति उनका लौकिक प्रेम अलौकिक बन गया।
अभिमन्यू ने व्यूह-रचना का ज्ञान गर्भ में ही पाया था। और भी कुछ घटनाएं ऐसी हो सकती हैं। किन्तु विश्व के इतिहास में भी ऐसी घटनाएं बहुत विरल हैं। इसलिए बौद्धिक स्तर पर इनकी व्याख्या बहुत स्पष्ट नहीं है। गर्भ के विषय में सूक्ष्म अध्ययन होने पर संभव है कि नए तथ्य उद्घाटित हों और असंभव संभव के धरातल पर उतर आए।
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