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________________ धर्म-परिवर्तन सम्मत और अनुमत / २१३ एक दिन श्रेणिक संदेह की कारा का बंदी बन गया। अभयकुमार को राज- प्रासाद जलाने की आज्ञा देकर स्वयं भगवान् महावीर के पास चला गया। वहां संदेह का धागा टूटा । वह तत्काल लौट आया। उसने दूर से ही देखी आग की लपटें और धुआं । अभयकुमार मार्ग में मिला। श्रेणिक ने पूछा - 'यह क्या?' अभयकुमार ने कहा - 'सम्राट् की आज्ञा का पालन ।' श्रेणिक बोला- 'जा रे जा, यह क्या किया तूने?' अभयकुमार की मांग पूरी हो गई । वह सम्राट् की स्वीकृति ले भगवान् महावीर के पास दीक्षित हो गया ।" श्रेणिक के और भी अनेक पुत्र भगवान् महावीर के पास दीक्षित हुए। उसमें मेघकुमार की घटना बहुत प्रसिद्ध है। श्रेणिक की अनेक रानियां भी भगवान् के संघ में दीक्षित हुई थीं। उसके जीवन-प्रसंग इस ओर संकेत करते हैं कि जीवन के उत्तरार्द्ध में उसके धर्माचार्य भगवान् महावीर ही रहे । बिहार की पुण्य भूमि उन दिनों धर्म-चेतना की जन्मस्थली बन रही थी। अनेक तीर्थंकर और धर्माचार्य धर्म के रहस्यों को उद्घाटित कर रहे थे। एक सत्य अनेक वचनों द्वारा विकीर्ण हो रहा था। एक आलोक अनेक खिड़कियों में फूट रहा था। जनता के सामने समस्या थी । वह अनेक आकर्षणों के झूले में झूल रही थी । देश और काल मानवीय प्रगति के बहुत बड़े आयाम हैं। कोई काल ऐसा आता है कि उसमें अनेक महान् आत्माएं एक साथ जन्म लेती हैं। महावीर का युग ऐसा ही था । उस युग ने धर्म को ऐसी गति दी कि उसका वेग आज भी तीव्र है। किन्तु उस वेग ने धर्म की भूमि में कुछ रेखाएं डाल दीं। उन रेखाओं ने जाति का रूप ले लिया । इसीलिए यह प्रश्न पूछा जाता है कि जैन हिन्दू हैं या नहीं? महावीर और बुद्ध ने वैदिक विधि-विधानों का मुक्त प्रतिरोध किया, पर आश्चर्य है कि उस युग में किसी के मस्तिष्क में यह प्रश्न नहीं उभरा कि जैन और बौद्ध हिन्दू हैं या नहीं? उस समय धर्म का कमल जातीयता के पंक से ऊपर खिल रहा था। १. अणुत्तरोववाइयदसाओ, १ ११५; आवश्यकचूर्णि उत्तरभाग, पृ. १७१ : अभओ समातिओ पव्वतिओ । २. अणुत्तरोववाइयदसाओ, १ । १५ । ३. अंतगडदसाओ, वर्ग ७,५ । श्रेणिक की कुछ रानियां तीर्थंकर महावीर के तीर्थंकर काल के सातवें वर्ष में और कुछ 1 रानियां चौदहवें वर्ष में प्रव्रजित हुईं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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