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२१२/ श्रमण महावीर
राजा का तर्क सुन मुनि बोले - राजन् ! तुमने नहीं समझा कौन व्यक्ति अनाथ होता है और कौन सनाथ? व्यक्ति कैसे अनाथ होता है और कैसे सनाथ? मैं भिखारी का पुत्र नहीं हूं। मेरा पिता कौशाम्बी का महान् धनी है। मुझे पूर्ण ऐश्वर्य और पूर्ण प्रेम प्राप्त था। मैं जीवन को पूरी तन्मयता से जी रहा था। एक दिन अचानक मेरी आंख में शूल चलने लगी। मैं पीड़ा से कराह उठा। मेरे पिता ने मेरी चिकित्सा कराने में कोई कसर नहीं रखी। जाने-माने वैद्य आए, पर वे मेरी पीड़ा को दूर नहीं कर सके । मेरे पिता ने मेरे लिए धन का स्रोत-सा बहा दिया, पर वे मेरी पीड़ा को दूर नहीं कर सके। मेरी माता, भाई और स्वजन वर्ग ने अथक चेष्टाएं की, पर वे मेरी पीड़ा को दूर नहीं कर सके। मेरी पत्नी ने अनगिन आंसू बहाए। उसने खान-पान तक छोड़ दिया। वह निरन्तर मेरे पास बैठी-बैठी सिसकती रही, पर वह मेरी पीड़ा को दूर नहीं कर सकी। मैं अनाथ हो गया। मुझे त्राण देने वाला कोई नहीं रहा । तब मुझे भगवान् महावीर की वाणी याद आई। मैंने अपना त्राण अपने में ही खोजा। मैंने संकल्प किया - मेरी चक्षु-पीड़ा शान्त हो जाए तो मैं भगवान् महावीर की शरण में चला जाऊं, सर्वात्मना आत्मा के लिए समर्पित हो जाऊं। सूर्योदय के साथ रात्रि का सघन अन्धकार विलीन हो गया। संकल्प के गहन निकुंज में मेरी चक्षुपीड़ा भी विलीन हो गई। मैं प्रसन्न था, मेरे पारिवारिक और चिकित्सक लोग आश्चर्यचकित। मैंने अपना संकल्प प्रकट किया तब सब लोग अप्रसन्न हो गए और मैं आश्चर्यचकित । मैंने सोचा - अत्राण व्यक्ति दूसरों को भी अत्राण देखना चाहते हैं। मैंने उस स्थिति को स्वीकार नहीं किया। मैं मुनि बन गया।'
मुनि की आत्म-कथा श्रेणिक के धर्म-परिवर्तन की कथा बन गई। वह मुनि की ओर ही आकृष्ट नहीं हुआ, भगवान् महावीर और उनकी धर्म-देशना के प्रति भी आकृष्ट हो गया।
बौद्ध पिटकों में धर्म-परिवर्तन की अनेक घटनाएं उल्लिखित हैं । श्रेणिक भगवान् बुद्ध के पास जाकर उनका उपासक बन गया। अभयकुमार श्रेणिक का पुत्र था, अमात्य
और सर्वतोमुखी प्रतिभा का धनी । वह भगवान् महावीर का उपासक था। भगवान् बुद्ध के पास गया, थोड़ी धर्मचर्चा की और उनकी शरण में चला गया।
उस युग में धर्म-परिवर्तन का क्रम चलता था, यह सुनिश्चित है। पर अभयकुमार के प्रसंगों को देखते हुए यह प्रतीति नहीं होती कि उसने धर्म-परितर्वन किया। वह भगवान् महावीर के पास दीक्षित हुआ और अन्त तक महावीर के शिष्यों में समादृत रहा।
श्रेणिक अभयकुमार को दीक्षित होने की अनुमति नहीं दे रहा था। अभयकुमार बार-बार दीक्षा की अनुमति मांग रहा था। एक दिन श्रेणिक ने कहा - 'जिस दिन मैं तुझे 'जा रे जा' कह दूं, उस दिन तू दीक्षा ले लेना।'
१. देखें-- उत्तराध्ययन का बीसवां अध्ययन ।
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