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धर्म-परिवर्तन सम्मत और अनुमत / २११
के बाद भी बौद्ध बना रहा । उसकी पटरानी थी चिल्लणा। वह भगवान् पार्श्व की शिष्या थी और श्रेणिक था भगवान् बुद्ध का शिष्य। दोनों दो दिशागामी थे और दोनों चाहते थे एक दिशागामी होना। श्रेणिक चिल्लणा को बौद्ध धर्म में दीक्षित करना चाहता था और चेल्लणा श्रेणिक को जैन धर्म में दीक्षित करना चाहती थी। दोनों में विचार का भेद था पर पारिवारिक प्रेम से दोनों अभिन्न थे। उनका विचारभेद उनके सघन प्रेम में एक भी छेद नहीं कर सका। भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध - दोनों अहिंसा, मैत्री, शांति और सहिष्णुता के प्रवर्तक थे। दोनों घृणा करना नहीं सिखाते थे। इसलिए राजा और रानी के बीच कभी भी घृणा का बीज अंकुरित नहीं हुआ। एक दिन श्रेणिक मंडिकुक्ष चैत्य में क्रीड़ा करने गया। उसने देखा, एक मुनि वृक्ष के नीचे ध्यान मुद्रा में खड़ा है। अवस्था में तरुण और सर्वांगसुन्दर। श्रेणिक उसके रूप लावण्य और सौकुमार्य पर मुग्ध हो गया। वह मुनि को अपलक निहारता रहा। मुनि की आकृति से झर रहे सौम्य का पान कर उसकी आंखें खिल उठीं। वह मुनि के निकट आकर बोला - भंते! आप कौन हैं? इस इठलाते यौवन में आप मुनि क्यों बने हैं? मैं जानना चाहता हूं। मुझे आशा है आप मेरी जिज्ञासा का समाधान देंगे।'
मुनि ध्यान पूर्ण कर बोले - 'राजन् ! मुझे कोई नाथ नहीं मिला, इसलिए मैं मुनि बन गया।
'आश्चर्य ! आप जैसे व्यक्तित्व को कोई नाथ नहीं मिला?' 'नहीं मिला तभी तो कह रहा हूं।'
'आप मेरे साथ चलें। मैं आपका नाथ बनता हूं। आपको शरण देता हूं। मेरे प्रासाद में सुख से रहें और सब प्रकार के भोगों का उपभोग करें।' ___'तुम स्वयं अनाथ हो। तुम मुझे क्या शरण दोगे? मेरे नाथ कैसे बनोगे? जो स्वयं अनाथ है, वह दूसरे का नाथ कैसे बन सकता है?'
मुनि का यह वचन सुन राजा स्तब्ध रह गया। वह अपने मर्म को सहलाते हुए बोला- 'आप मुनि हैं, गृहस्थ नहीं हैं। क्या आपके धर्माचार्य भगवान् महावीर ने आपको सत्य का महत्व नहीं समझाया है?'
'समझाया है, बहुत अच्छी तरह से समझाया है।' 'फिर आप मुझे अनाथ कैसे कहते हैं? क्या आप मुझे जानते नहीं?'
'जानता हूं, तभी कहता हूं। मैं तुम्हें नहीं जानता तो अनाथ कैसे कहता?'
___ 'मैं आपकी बात नहीं समझ पाया। मेरे पास राज्य है, सेना है, कोष है, अनुग्रह और निग्रह की शक्ति है, फिर मैं अनाथ कैसे?'
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