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________________ १९६ / श्रमण महावीर देवलोक में उत्पन्न होते हैं।' स्थविर मेहिल ने कहा - 'आर्यों ! जीव पूर्व संयम से देवलोक में उत्पन्न होते हैं।' स्थविर आनंदरक्षित ने कहा - आर्यों ! शेष कर्मों से जीव देवलोक में उत्पन्न होते स्थविर काश्यप ने कहा - 'आर्यों ! आसक्ति क्षीण न होने के कारण जीव देवलोक में उत्पन्न होते हैं।' गौतम इन प्रश्नोत्तरों का विवरण प्राप्त कर भगवान् के पास पहुंचे। भगवान् के सामने सारी बात रखकर बोले - 'भन्ते! क्या पाश्र्वापत्यीय स्थविरों द्वारा प्रदत्त उत्तर सही है? क्या वे सही उत्तर देने में समर्थ हैं? क्या वे सम्यग्ज्ञानी हैं? क्या वे अभ्यासी और विशिष्ट ज्ञानी हैं?' भगवान् ने कहा - 'गौतम! पार्खापत्यीय स्थविरों द्वारा प्रदत्त उत्तर सही है। वे सही उत्तर देने में समर्थ हैं। मैं भी इन प्रश्नों का यही उत्तर देता हूं।' 'भन्ते ! ऐसे श्रमणों की उपासना से क्या लाभ होता है?' 'सत्य सुनने को मिलता है।' 'भन्ते! उससे क्या होता है?' 'ज्ञान होता है।' 'भन्ते! उससे क्या होता है?' 'विज्ञान होता है- सूक्ष्म पर्यायों का विवेक होता है।' 'भन्ते! उससे क्या होता है?' 'प्रत्याख्यान होता है - अनात्मा से आत्मा का पृथक्करण होता है।' 'भन्ते! उससे क्या होता है?' 'संयम होता है।' 'भन्ते! उससे क्या होता है?' 'अनाश्रव होता है - अनात्मा और आत्मा का संपर्क-सेतु टूट जाता है।' 'भन्ते! उससे क्या होता है?' 'तप करने की क्षमता विकसित होती है।' 'भन्ते ! उससे क्या होता है?' 'पूर्व-संचित कर्म-मल क्षीण होते हैं।' 'भन्ते ! उससे क्या होता है?' 'चंचलता विच्छिन्न होती है।' 'भन्ते ! उससे क्या होता है।' 'सिद्धि होती है। १. भगवई, २।९२-१११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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