________________
मुक्त मानस : मुक्त द्वार
सामने की दीवार पर घड़ी है। उसमें नौ बजे हैं। क्या सब घड़ियों में नौ ही बजे हैं? यह सम्भव नहीं है। कोई दो मिनट आगे है तो कोई दो मिनट पीछे है। काल एक गति से चलता है । उसका प्रवाह न रुकता है और न त्वरित होता है। वह सदा और सर्वत्र अपनी गति से चलता है ।
३३
घड़ी का नहीं है। वह काल की गति का सूचक यंत्र है। यंत्र कभी शीघ्र चलने लगता है और कभी मंद। यह गति-भेद इस सत्य की सूचना देता है कि काल और घड़ी एक नहीं हैं।
धर्म और धर्म - संस्थान भी एक नहीं हैं। धर्म सत्य है । सत्य देश और काल से अबाधित होता है। देश बदल जाने पर धर्म नहीं बदलता । जो धर्म भारत के लिए है, वही जापान के लिए और जो जापान के लिए है, वही भारत के लिए है । भारत और जापान के धर्म दो नहीं हो सकते। जो धर्म अतीत में था, वही आज है और आने वाले कल में भी वही होगा । काल बदल जाने पर धर्म नहीं बदलता ।
प्यास लगती है और हम पानी पीते हैं। प्यास लगने पर हम पानी ही पीते हैं, रोटी नहीं खाते। यह क्यों ? इसका हेतु निश्चित नियम है। पानी पीने से प्यास बुझ जाती है, हर देश में और हर काल में । यह नियम देश और काल से बाधित नहीं है इसलिए यह सत्य है।
मन अशांत होता है, तब हम धर्म की ओर झांकते हैं। मन की अशांति मिटाने के लिए हम धर्म की ओर ही झांकते है, धन की ओर नहीं झांकते। यह क्यों ? इसका हेतु निश्चित नियम है। धर्म की अनुभूति से मन की अशांति मिट जाती है, हर देश में और हर काल में । यह नियम देश और काल से बाधित नहीं है इसलिए यह सत्य है ।
सत्य एक रूप होता है। यह श्रमणों का सत्य और यह वैदिकों का सत्य - यह भेद नहीं हो सकता । वैदिक धर्म और श्रमण धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म - ये धर्म-संस्थान हैं, धर्म के तंत्र हैं, धर्म नहीं है। ये धर्म नहीं हैं, इसलिए अनेक हो सकते हैं, भिन्न और परस्पर विरोधी भी । ये सत्य को शब्द के माध्यम से पकड़ने का प्रयत्न करते हैं, जैसे एक शिशु तालाब में पड़ने वाले सूर्य के प्रतिबिम्ब को पकड़ने का प्रयत्न करता है।
एक आदमी कमरे में बैठा है। द्वार बन्द है । एक छोटी-सी खिड़की खुली है। उस पर जाली लगी हुई है । यह सच है कि आदमी खिड़की से झांककर आकाश को देख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org