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समता के तीन आयाम / १९१
'क्या मैं भी जा सकता हूं?" 'किसी के लिए प्रवेश निषिद्ध नहीं है । '
अर्जुन सुदर्शन के साथ भगवान् के पास पहुंचा। आरक्षिकों ने श्रेणिक को सूचना दी कि पाप शांत हो गया है। राजपथ निर्विघ्न है। निरंकुश हाथी पर अंकुश का नियंत्रण है। अर्जुन सुदर्शन के साथ भगवान् महावीर के पास चला गया है। राजकीय घोषणा के साथ राजपथ का आवागमन खुल गया ।
भगवान् के कण-कण में अहिंसा का प्रवाह था | मैत्री और प्रेम की अजस्र धाराएं बह रही थीं। उसमें स्नात व्यक्ति की क्रूरता धुल जाती थी। अर्जुन का मन मृदुता का स्रोत
बन गया ।
मनुष्य के अन्तःकरण में कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्ष होते हैं। जिनकी चेतना तामसिक होती है, वे प्रकाश पर तमस् का ढक्कन चढ़ा देते हैं। जिनकी चेतना आलोकित होती है, वे प्रकाश को उभार तमस् को विलीन कर देते हैं । भगवान् ने अर्जुन के अन्तःकरण को आलोक से भर दिया। उसके मन में समता की दीपशिखा प्रज्वलित हो गई। वह मुनि बन गया ।
कल का हत्यारा आज का मुनि - यह नाटकीय परिवर्तन जनता के गले कैसे उतर सकता है? हर आदमी उस सत्य को नहीं जानता कि मनुष्य के जीवन में बड़े परिवर्तन नाटकीय ढंग से ही होते हैं । असाधारण घटना साधरण ढंग से नहीं हो सकती। साधरण आदमी असाधारण घटना को एक क्षण में पकड़ भी नहीं पाता। अर्जुन से आतंकित जनता उसके मुनित्व को स्वीकार नहीं कर सकी ।
अर्जुन ने भगवान् के पास समता का मंत्र पढ़ा। उसकी समता प्रखर हो गई। मानअपमान, लाभ-अलाभ, जीवन-मृत्यु और सुख-दुःख में तटस्थ रहना उसे प्राप्त हो गया। कुछ दिनों बाद मुनि अर्जुन भिक्षा के लिए राजगृह में गया । घर-घर में आवाजें आने लगीं - इसने मेरे पिता को मारा है, भाई को मारा है, पुत्र को मारा है, माता को मारा है, पत्नी को मारा है, मित्र को मारा है। कहीं गालियां, कहीं व्यंग्य, कहीं तर्जना और कहीं प्रताड़ना। अर्जुन देख रहा है यह कृत की प्रतिक्रिया है, अतीत के अनाचरण का प्रायश्चित्त है। उसे यदि रोटी मिलती है तो पानी नहीं मिलता और यदि पानी मिलता है तो रोटी नहीं मिलती। पर उसका मन न रोटी में उलझता है और न पानी में । उसका मन समता में उलझकर सदा के लिए सुलझ गया । उसके समत्व की निष्ठा ने जनता का आक्रोश सद्भावना में बदल दिया । अहिंसा ने हिंसा का विष धो डाला।
३.
सहिष्णुता का आयाम
मेतार्य जन्मना चाण्डाल थे । वे भगवान् महावीर के संघ में दीक्षित हुए। उनका १. अंतगडदसाओ, ६ ।
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