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जीवनवृत्त : कुछ चित्र, कुछ रेखाएं/५
आरोपित होता है। माता-पिता ने आगन्तुक अतिथियों और सम्बन्धियों से कहा, 'जिस दिन यह शिशु गर्भ में आया, उसी दिन हमारा राज्य धन-धान्य, सोना-चाँदी, मणिमुक्ता, कोश-कोष्ठागार, बल-वाहन से बढ़ा है, इसलिए हम चाहते हैं कि इस शिशु का नाम 'वर्द्धमान' रखा जाए। हम सोचते हैं, आप इस प्रस्ताव से अवश्य सहमत होंगे।'
उपस्थित लोगों ने सिद्धार्थ और त्रिशला के प्रस्ताव का एक स्वर से समर्थन किया। शिशु का नाम वर्द्धमान हो गया। वर्द्धमान', 'सिद्धार्थ' और 'त्रिशला' के जयघोष के साथ नामकरण-संस्कार सम्पन्न हुआ।
आमलकी क्रीड़ा ___कुमार वर्द्धमान आठवें वर्ष में चल रहे थे। शरीर के अवयव विकास की दिशा खोज रहे थे। यौवन का क्षितिज अभी दूर था। फिर भी पराक्रम का बीज प्रस्फुटित हो गया। क्षात्र तेज का अभय साकार हो गया।
एक बार वे बच्चों के साथ 'आमलकी' नामक खेल खेल रहे थे । यह खेल वृक्ष को केन्द्र मानकर खेला जाता था। खेलने वाले सब बच्चे वृक्ष की ओर दौड़ते। जो बच्चा सबसे पहले उस वृक्ष पर चढ़कर उतर आता वह विजेता माना जाता। विजेता बच्चा पराजित बच्चों के कंधों पर बैठकर दौड़ के प्रारम्भ बिन्दु तक जाता।
कुमार वर्द्धमान सबसे आगे दौड़ पीपल के पेड़ पर चढ़ गए। उनके साथ-साथ एक सांप भी चढ़ा और पेड़ के तने से लिपट गया । बच्चे डरकर भाग गए। कुमार वर्द्धमान डरे नहीं । वे झट से नीचे उतरे, उस सांप को पकड़कर एक ओर डाल दिया। अध्ययन
कुमार वर्द्धमान प्रारम्भ से ही प्रतिभा सम्पन्न थे। उनका प्रातिभ ज्ञान बौद्धिक ज्ञान से बहुत ऊंचा था। उन्हें अतीन्द्रियज्ञान की शक्ति प्राप्त थी। वे दूसरों के सामने उसका प्रदर्शन नहीं करते थे। वे आठ वर्ष की अवस्था को पार कर नौवें वर्ष में पहुंचे। माता-पिता ने उचित समय देखकर उन्हें विद्यालय में भेजा । अध्यापक उन्हें पढ़ाने लगा। वे विनयपूर्वक उसे सुनते रहे।
उस समय एक ब्राह्मण आया। विराट् व्यक्तित्व और गौरवपूर्ण आकृति । अध्यापक ने उसे ससम्मान आसन पर बिठाया। उसने कुमार वर्द्धमान से कुछ प्रश्न पूछे – अक्षरों के पर्याय कितने हैं? उनके भंग (विकल्प) कितने हैं? उपोद्घात क्या है? आक्षेप और परिहार क्या हैं? कुमार ने इन प्रश्नों के उत्तर दिए । प्रश्नों की लम्बी तालिका प्राप्त है, पर १. कल्पसूत्र, सूत्र ८५-८६ । २. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २४६ ।
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