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________________ १६८ / श्रमण महावीर 'तुम भी सच हो कि हाथी सूप जैसा है पर तुमने हाथी का कान पकड़ा, नहीं पकड़ा ।' 'तुम भी सच हो कि हाथी मोटी रस्सी जैसा है, पर तुमने हाथी की पूंछ पकड़ी, पूरा हाथी नहीं पकड़ा। ' 'तुम अपनी-अपनी पकड़ को सत्य और दूसरों की पकड़ को मिथ्या बतलाते हो, इसलिए तुम सब झूठे हो। तुम अवयव को अवयवी में मिला दो, खण्ड को अखण्ड की धारा में बहा दो, फिर तुम सब सत्य हो ।' विश्व का प्रत्येक मूल तत्व अखण्ड है। परमाणु भी अखण्ड है और आत्मा भी अखण्ड है । किन्तु कोई भी अखण्ड तत्व खण्ड से वियुक्त नहीं है। महावीर ने सापेक्षता के सूत्र से अखण्ड और खण्ड की एकता को साधा। उन्होंने रहस्य का अनावरण इन शब्दों में किया- 'जो एक को जान लेता है, वह सबको जान लेता है। सबको जानने वाला ही एक को जान सकता है । " आग्रही मनुष्य आंख पर आग्रह का उपनेत्र चढ़ाकर सत्य को देखता है और अनाग्रही युक्ति के अंचल में मनन का प्रयोग करता है । आग्रही मनुष्य आंख पर आग्रह का उपनेत्र चढ़ाकर सत्य को देखता है और अनाग्रही मनुष्य अनन्त चक्षु होकर सत्य को देखता है । भगवान् महावीर का युग तत्व- जिज्ञासा का युग था । असंख्य जिज्ञासु व्यक्ति अपनी जिज्ञासा का शमन करने के लिए बड़े-बड़े आचार्यों के पास जाते थे । अपने-अपने आचार्यों के पास जाते ही थे पर यदा-कदा दूसरे आचार्यों के पास भी जाते थे । इन जिज्ञासुओं में स्त्रियां भी होती थीं। भगवान् महावीर ने अपने जीवन काल में हजारोंहजारों जिज्ञासाओं का समाधान किया। उनके सामने सबसे बड़े जिज्ञासाकार थे, उनके ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति गौतम । महावीर की वाणी का बहुत बड़ा भाग उनकी जिज्ञासाओं का समाधान है। पूरा १. एक बार गौतम ने पूछा - 'भंते! कुछ साधक कहते हैं कि साधना अरण्य में ही हो सकती है। इस विषय में आपका क्या मत है ? ' १. आयारो ३ १७४ | हाथी 'गौतम! मैं यह प्रतिपादन करता हूं कि साधना गांव में भी हो सकती है और अरण्य में भी हो सकती है। साधना गांव में भी नहीं होती और अरण्य में भी नहीं होती।' 'भंते! यह कैसे ?' 'गौतम! जो आत्मा और शरीर के भेद को जानता है, वह गांव में भी साधना कर सकता है और अरण्य में भी कर सकता है। जो आत्मा और शरीर के भेद को नहीं जानता वह गांव में भी साधना नहीं कर सकता और अरण्य में भी नहीं कर सकता।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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