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________________ सह-अस्तित्व और सापेक्षता / १६९ जो साधक आत्मा को नहीं देखता, उसकी दृष्टि में ग्राम और अरण्य का प्रश्न मुख्य होता है। जो आत्मा को देखता है, उसका निवास आत्मा में ही होता है। इसलिए उसके सामने ग्राम और अरण्य का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। यह तर्क उचित है कि यदि तुम आत्मा को देखते हो तो अरण्य में जाकर क्या करोगे? यदि तुम आत्मा को नहीं देखते हो तो अरण्य में जाकर क्या करोगे?? २. सोमिल जाति से ब्राह्मण था, वैदिक धर्म का अनुयायी और वेदों का पारगामी विद्वान् । वह वाणिज्यग्राम में रहता था। भगवान् वाणिज्यग्राम में आए। द्विपलाश चैत्य में ठहरे। सोमिल भगवान् के पास आया। उसने अभिवादन कर पूछा - 'भंते ! आप एक हैं या दो?' 'मैं एक भी हूं और दो भी हूं।' 'भंते ! यह कैसे हो सकता है?' 'मैं चेतन द्रव्य की अपेक्षा से एक हूं तथा ज्ञान और दर्शन की अपेक्षा से दो हूं।' 'भंते ! आप शाश्वत हैं या गतिशील?' 'कालातीत चेतना की अपेक्षा मैं शाश्वत हूं, और त्रिकाल-चेतना की अपेक्षा मैं गतिशील हूं - जो भूत में था, वह वर्तमान में नहीं हूं और जो वर्तमान में हूं, वह भविष्य में नहीं होऊंगा। ३. भगवान् कौशाम्बी के चन्द्रावतरण चैत्य में विहार कर रहे थे। महाराज शतानीक की बहन जयन्ती वहां आई। उसने वंदना कर पूछा - 'भंते ! सोना अच्छा है या जागना अच्छा है।' 'कुछ जीवों का सोना अच्छा है और कुछ जीवों का जागना अच्छा है।' 'भंते ! ये दोनों कैसे?' 'अधार्मिक मनुष्य का सोना अच्छा है। वह जागकर दूसरों को सुला देता है, इसलिए उसका सोना अच्छा है।' 'धार्मिक मनुष्य का जागना अच्छा है। वह जागकर दूसरों को जगा देता है, इसलिए उसका जागना अच्छा है।' 'भंते ! जीवों का दुर्बल होना अच्छा है या सबल होना?' 'कुछ जीवों का दुर्बल होना अच्छा है और कुछ जीवों का सबल होना अच्छा है।' 'भंते ! ये दोनों कैसे?' 'अधार्मिक मनुष्य का दुर्बल होना अच्छा है। वह अधर्म से आजीविका कर दूसरों के दुःख का हेतु होता है इसलिए उसका दुर्बल होना अच्छा है।' 'धार्मिक मनुष्य का सबल होना अच्छा है। वह धर्म से आजीविका कर दूसरों के १. आयारो ८।१४ । २. भगवई,१८।२१९-२२० । ३. तीर्थंकर काल का तीसरा वर्ष । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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