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सह-अस्तित्व और सापेक्षता / १६७
है। पर तुम अपेक्षा के धागे को तोड़कर उसका प्रतिपादन कर रहे हो, खण्ड को अखण्ड बता रहे हो इस कोण से तुम्हारा सिद्धान्त मिथ्या है। अपेक्षा के धागे को जोड़कर उसका प्रतिपादन करो, मिथ्या सत्य हो जाएगा और खण्ड अखण्ड का प्रतीक।' इस भावधारा में निमज्जन कर एक जैन मनीषी ने महावीर के दर्शन को मिथ्या दृष्टियों के समूह की संज्ञा दी। जितनी एकागी दृष्टियां हैं, वे सब निरपेक्ष होने के कारण मिथ्या हैं । वे सब मिल जाती हैं, सापेक्षता के सूत्र में शृंखलित होकर एक हो जाती हैं तब महावीर का दर्शन बन जाता है।
सिद्धसेन दिवाकर ने यही बात काव्य की भाषा में कही है - भगवन् ! सिन्धु में जैसे सरिताएं मिलती हैं, वैसे ही आपकी अनेकान्त दृष्टि में सारी दृष्टियां आकर मिल जाती हैं। उन दृष्टियों में आप नहीं मिलते, जैसे सरिताओं में सिन्धु नहीं होता।'
सत्य के विषय में चल रहा विवाद एकांगी दृष्टि का विवाद है। पांच अंधे यात्रा पर जा रहे थे। एक गांव में पहुंचे। हाथी का नाम सुना । उसे देखने गए। उनका देखना आंखों का देखना नहीं था। उन्होंने छूकर हाथी को देखा। पांचों ने हाथी को देख लिया और चित्र कल्पना में उतार लिया। अब परस्पर चर्चा करने लगे। पहले ने कहा - 'हाथी खंभे जैसा है।' दूसरा बोला – 'तुम गलत कहते हो, हाथी खंभे जैसा नहीं है, वह केले के तने जैसा है।' तीसरा दोनों को झुठलाते हुए बोला – 'हाथी मूसल जैसा है।' चौथा बोला – 'तुम भी सही नहीं हो, हाथी सूप जैसा है।' पांचवां बोला – 'तुम सब झूठे हो, हाथी मोटी रस्सी जैसा है। उन सबने अपने-अपने अनुभव के चित्र कल्पना के ढांचे में मढ़ लिये। अब एक रेखा भर भी इधर-उधर सरकने को अवकाश नहीं रहा। वे अपने-अपने चित्र को परम सत्य और दूसरों के चित्र को मिथ्या बतलाने लगे। विवाद का कहीं अन्त नहीं हुआ।
एक आदमी आया। उसके आंखें थीं। उसने पूरा हाथी देखा था। वह कुछ क्षण अंधों के विवाद को सुनता रहा। फिर बोला – 'भाई ! तुम लड़ते क्यों हो? उन्होंने अपनी सारी कहानी सुनाई और उससे अपने-अपने पक्ष का समर्थन चाहा। आगंतुक आदमी बोला – 'तुम सब झूठे हो।' पांचों चिल्लाए – 'यह कैसे हो सकता है?' हमने हाथी को छूकर देखा है।' आगंतुक बोला – 'तुमने हाथी को नहीं छुआ। उसके एक-एक अंग को छुआ। चलो, तुम्हारा विवाद हाथी के पास चलकर समाप्त करता हूं।' वह उन पांचों को हाथी के पास ले आया। एक-एक अंग को छुआकर बोला
'तुम सच हो कि हाथी खंभे जैसा है, पर तुमने हाथी का पैर पकड़ा, पूरा हाथी नहीं
पकड़ा।'
'तुम भी सच हो कि हाथी केले के तने जैसा है, पर तुमने हाथी की सूंड पकड़ी, पूरा हाथी नहीं पकड़ा।'
'तुम भी सच हो कि हाथी मूसल जैसा है, पर तुमने हाथी का दांत पकड़ा, पूरा हाथी नहीं पकड़ा।'
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