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________________ जीवनवृत्त : कुछ चित्र, कुछ रेखाए / १६५ चीनी मीठी है, पर वह मीठी ही नहीं है । वह कड़वी भी है, खट्टी भी है, कषैली भी है और तीखी भी है । गुलाब का फूल सुगंधित है पर वह सुगंधित ही नहीं है। वह दुर्गन्धित भी है । अग्नि उष्ण है, पर वह उष्ण ही नहीं है, वह शीत भी है। हिम शीत है, पर वह शीत ही नहीं है, वह उष्ण भी है। तेल चिकना है, पर वह चिकना ही नहीं है, वह रूखा भी है। राख रूखी है, पर वह रूखी ही नहीं है, वह चिकनी भी है । मक्खन मृदु है, पर वह मृदु ही नहीं है, वह कठोर भी है। लोह कठोर है, पर वह कठोर ही नहीं है, वह मृदु भी है रूई हल्की है, पर वह हल्की ही नहीं है, वह भारी भी है। पत्थर भारी है, पर वह भारी ही नहीं है, वह हल्का भी है। । I व्यक्त पर्यायों को देखकर हम कहते हैं कि भ्रमर काला है, चीनी मीठी है, गुलाब का फूल सुगंधित है, अग्नि उष्ण है, हिम शीत है, तेल चिकना है, राख रूखी है, मक्खन मृदु है, लोह कठोर है, रूई हल्की है और पत्थर भारी है। यदि व्यक्त पर्याय अव्यक्त और अव्यक्त पर्याय व्यक्त हो जाए या किया जाए तो भ्रमर सफेद, चीनी कड़वी, गुलाब का फूल दुर्गन्धित, अग्नि शीत, हिम उष्ण, तेल रूखा, राख चिकनी, मक्खन कठोर, लोह मृदु, रूई भारी और पत्थर हल्का हो सकता है । काला या सफेद होना, मीठा या कड़वा होना, सुगंध या दुर्गन्ध होना, उष्ण या शीत होना, चिकना या रूखा होना, मृदु या कठोर होना, हल्का या भारी होना पर्याय है । इसलिए वे अनित्य हैं, परिवर्तशील हैं। इनके तल में परमाणु हैं। वे नित्य हैं, शाश्वत हैं । ये सब पर्याय उन्हीं में घटित होते हैं। इनके होने पर भी परमाणु विघटित नहीं होता । ये विरोधी प्रतीत होने वाले पर्याय एक ही आधार में घटित होते हैं, इसलिए वस्तु जगत् में सबका सह-अस्तित्व होता है, विरोध नहीं होता । विश्व व्यवस्था के नियमों में कहीं भी विरोध नहीं हैं। उसकी प्रतीति हमारी बुद्धि में होती है। इस समस्या को भगवान् ने सापेक्ष-दृष्टिकोण और वचन - भंगी द्वारा सुलझाया । वस्तु में अनन्त युगल-धर्म हैं। उनका समग्र अनन्त दृष्टिकोण से ही हो सकता है। उनका प्रतिपादन भी अनन्त वचन - भंगियों से हो सकता है। वस्तु के समग्र धर्मों को जाना जा सकता है, पर कहा नहीं जा सकता। एक क्षण में एक शब्द द्वारा एक ही धर्म कहा जा सकता है। एक धर्म का प्रतिपादन समग्र का प्रतिपादन नहीं हो सकता और समग्र को एक साथ कह सकें, वैसा कोई शब्द नहीं है। इस समस्या को निरस्त करने के लिए भगवान् ने सापेक्ष दृष्टिकोण के प्रतीक शब्द 'स्यात्' का चुनाव किया। 'जीवन है' - इस वचनभंगी में जीवन के अस्तित्व का प्रतिपादन है। जीवन केवल अस्तित्व ही नहीं है, वह और भी बहुत है । 'जीवन नहीं है'- इसमें जीवन के नास्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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