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१६४ / श्रमण महावीर
अनित्य भी है । नित्य और अनित्य परस्पर विरोधी नहीं हैं। एक ही तने की दो अनिवार्य शाखाएं हैं। दीपशिखा प्रतिक्षण क्षीण होती जाती है, इसलिए नैयायिक और बौद्ध का उसे अनित्य मानना अनुचित नहीं है। आकाश कभी भी समाप्त नहीं होता, इसलिए नैयायिक का उसे नित्य मानना भी अनुचित नहीं है। महावीर ने यह नहीं कहा कि दीपशिखा को अनित्य कैसे कहा जा सकता है? उन्होंने कहा - दीपशिखा को अनित्य ही मानना या नित्य न मानना अनुचित है। दीपशिखा एक पर्याय है । परमाणुओं का तैजस रूप में होना दीपशिखा है। उसके समाप्त होने का अर्थ है - परमाणुओं के तैजस पर्याय की समाप्ति । तैजस पर्याय का समाप्त होना परमाणुओं का समाप्त होना नहीं है। परमाणु शाश्वत हैं। वे तैजस पर्याय के होने पर भी होते हैं और उनके न होने पर भी होते हैं ।
गौतम ने पूछा - ' भन्ते ! जीव शाश्वत या अशाश्वत?"
भगवान् ने कहा - 'गौतम! जीव शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है । ' 'भन्ते ! दोनों कैसे?'
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'पर्याय की ऊर्मियों के तल में जो चेतना का स्थिर शान्त सागर है, वह शाश्वत है उस सागर में ऊर्मियां उन्मज्जित और निमज्जित होती रहती हैं, वे अशाश्वत हैं। ऊर्मियों का अस्तित्व सागर से भिन्न नहीं है और सागर का अस्तित्व ऊर्मियों से भिन्न नहीं है । ऊर्मि-रहित सागर और सागर - रहित ऊर्मि का अस्तित्व उपलब्ध नहीं होता। इसीलिए मैं कहता हूं कि जीव शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है। पर्यायों के तल में तिरोहित चेतना के अस्तित्व को देखें तब हम कह सकते हैं कि जीव शाश्वत है । चेतना के अस्तित्व पर उफनते पर्यायों को देखें तब हम कह सकते हैं कि जीव अशाश्वत है ।
मूल तत्व जितने थे, उतने ही हैं और उतने ही होंगे। उनमें जो है, वह कभी नष्ट नहीं होता और जो नहीं है, वह कभी उत्पन्न नहीं होता । वे अवस्थित हैं, उत्पाद और विनाश के चक्र से मुक्त हैं । वे दो हैं - चेतन और अचेतन । वे दोनों स्वतन्त्र अस्तित्व हैं । इनमें अत्यन्ताभाव है। यहां अरस्तू का तर्क महावीर के नय से अभिन्न हो जाता है। अरस्तू का तर्क है कि 'अ' 'अ' है और 'अ' कभी 'क' नहीं हो सकता। 'क' 'क' है और 'क' कभी 'अ' नहीं हो सकता। महावीर का नय है कि चेतन चेतन है, चेतन कभी अचेतन नहीं हो सकता । अचेतन अचेतन है, अचेतन कभी चेतन नहीं हो सकता ।
हम मूल तत्वों को पर्यायों के माध्यम से ही जान पाते हैं। पर्यायों का जगत् बहुत बड़ा है। यह उत्पन्न होता है और विलीन होता है । पल-पल बदलता रहता है। यहां अरस्तू का तर्क महावीर के नय से भिन्न हो जाता है। पर्याय - जगत् के बारे में महावीर का नय है कि 'अ' 'अ' भी है और 'अ' 'क' भी है। 'क 'क' भी है और 'क' 'अ' भी है । 'अ' 'क' हो सकता है और 'क' 'अ' हो सकता है
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भ्रमर काला है, पर वह काला ही नहीं है। वह पीला भी है, नीला भी है, लाल भी है और सफेद भी है ।
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