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जीवनवृत्त : कुछ चित्र, कुछ रेखाएं/ ३
त्रिशला जागी । उसका मन उल्लास से भर गया। उसे अपने स्वप्नों पर आश्चर्य हो रहा था। आज तक उसने इतने महत्वपूर्ण स्वप्न कभी नहीं देखे थे। वह महाराज सिद्धार्थ के पास गई। उन्हें स्वप्नों की बात सुनाई । सिद्धार्थ हर्ष और विस्मय से आरक्त हो गया।
सिद्धार्थ ने स्वप्न- पाठकों को आमंत्रित किया। उन्होंने स्वप्नों का अध्ययन कर कहा, 'महाराज ! देवी के पुत्र-रत्न होगा। ये स्वप्न उसके धर्म-चक्रवर्ती होने की सूचना दे रहे हैं।' महाराज ने प्रीतिदान दे स्वप्न-पाठकों को विदा किया। जन्म
सब दिशाएं सौम्य और आलोक से पूर्ण हैं। वासन्ती पवन मंद-मंद गति से प्रवाहित हो रहा है। पुष्पित उपवन वसन्त के अस्तित्व की उद्घोषणा कर रहे हैं। जलाशय प्रसन्न हैं। प्रफुल्ल हैं भूमि और आकाश । धान्य की समृद्धि से समूचा जनपद हर्ष-विभोर हो उठा है। इस प्रसन्न वातावरण में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की मध्यरात्रि को एक शिशु ने जन्म लिया।
यह विक्रम पूर्व ५४२ और ईसा पूर्व ५९९ की घटना है।
जनपद का नाम विदेह । नगर का नाम क्षत्रियकुण्ड। पिता का नाम सिद्धार्थ । माता का नाम त्रिशला। शिशु अभी अनाम।
__ वह दासप्रथा का युग था। प्रियंवदा दासी ने सिद्धार्थ को पुत्र-जन्म की सूचना दी। सिद्धार्थ यह सूचना पा हर्ष-विभोर हो उठे। उन्होंने प्रियंवदा को प्रीतिदान दिया और सदा के लिए दासी-कर्म से मुक्त कर दिया। दास-प्रथा के उन्मूलन में यह था शिशु का पहला अभियान।
सिद्धार्थ ने नगर-रक्षक को बुलाकर कहा, 'देवानुप्रिय! पुत्ररत्न का जन्म हुआ है। उसकी खुशी में उत्सव का आयोजन करो।' ६.शशि
६.शशि ७. सूर्य
७. दिनकर ८. कुम्भद्विक
८. कुम्भ ९.झषयुगल
९.झय (ध्वजा) १०.सागर
१०.सागर ११.सरोवर
११. पद्मसर १२.सिंहासन
१२.विमान १३. देव-विमान
१३.रत्न-उच्चय १४. नाग-विमान
१४.शिखि (अग्नि) १५.रत्न-राशि
१६. निधूम अग्नि १. कल्पसूत्र, सूत्र ६४-७८ ।
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