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________________ क्रान्ति का सिंहनाद / १५७ नहीं जा सकता । वस्तु-परिमाण व्यक्तिगत स्वामित्व की मर्यादा है। यह भाषा की पकड़ में आ सकती है। इसीलिए भगवान् ने इच्छा-परिमाण को वस्तु-परिमाण के साथ निरूपित किया। वस्तु-परिमाण इच्छा-परिमाण का फलित है। वस्तु का अपरिमित संग्रह वही व्यक्ति करता है जिसकी इच्छा अपरिमित है । वस्तु के आधार पर परिग्रह की दो दिशाएं बनती हैं १. महा परिग्रह - असीम व्यक्तिगत स्वामित्व। २. अल्प परिग्रह - सीमित व्यक्तिगत स्वामित्व। भगवान् महावीर ने अल्प-परिग्रही समाज-रचना की नींव डाली। इसमें लाखों स्त्री-पुरुष सम्मिलित हुए। उन्होंने अपनी आवश्यक सम्पत्ति से अधिक संग्रह नहीं करने का संकल्प किया। भगवान् ने संग्रह की गाणितिक सीमा का प्रतिपादन नहीं किया। उन्होंने संग्रह-नियंत्रण की दो दिशाएं प्रस्तुत की। पहली - अर्थार्जन में साधन-शुद्धि का विवेक और दूसरी - व्यक्तिगत जीवन में संयम का अभ्यास । अल्प-परिग्रही व्यक्तियों के लिए निम्न आचरण वर्जित थे - १. मिलावट। २. झूठा तोल-माप। असली वस्तु दिखाकर नकली वस्तु देना। ४. पशुओं पर अधिक भार लादना। ५. दूसरों की जीविका का विच्छेद करना। भगवान् ने अनुभव किया कि बहुत सारे लोग सुदूरप्रदेशों में जाते हैं और वे उस प्रदेश की जनता के हितों का अपहरण करते हैं। इस प्रवृत्ति से आक्रमण और संग्रह - दोनों को प्रोत्साहन मिलता है। भगवान् ने इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए 'दिग्व्रत' का प्रतिपादन किया। उनके अल्प-परिग्रही अनुयायियों ने अपने प्रदेश से बाहर जाकर अर्थार्जन करना त्याग दिया। अप्राप्त भोग और सुख को प्राप्त करने के लिए दूसरे प्रदेशों में जाना उनके लिए निषिद्ध आचरण हो गया। भगवान् ने जन-जन में अपरिग्रह की निष्ठा का निर्माण किया। पूनिया' इस निष्ठा का ज्वलन्त प्रतीक था। सम्राट् श्रेणिक ने उससे कहा – 'तुम एक सामायिक (समता की साधना का व्रत) मुझे दे दो। उसके बदले में मैं तुम्हें आधा राज्य दे दूंगा।' 'पूनिया' ने विनम्रता के साथ सम्राट का प्रस्ताव लौटा दिया। अपनी आत्मिक साधना का सौदा उसे मान्य नहीं हुआ। 'पूनिया' कोई धनपति नहीं था। वह रूई की पूनिया बनाकर अपनी जीविका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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