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________________ १५६ / श्रमण महावीर नहीं किया था। उनके सामने गरीबी और अमीरी की समस्या नहीं थी। उनके सामने समस्या थी मानसिक शान्ति की, संयम की लौ को प्रज्वलित रखने की और आत्मा को पाने की। अर्थ का संग्रह इन तीनों में बाधक था । इसीलिए महावीर ने असंग्रह को महाव्रत के रूप में प्रस्तुत किया। भगवान् का निश्चित अभिमत था कि जो व्यक्ति अपरिग्रह को नहीं समझता वह धर्म को नहीं समझ सकता, जो व्यक्ति अपरिग्रह का आचरण नहीं करता वह धर्म का आचरण नहीं कर सकता। परिग्रह की लौकिक भाषा है - अर्थ और वस्तुओं का संग्रह । भगवान् की भाषा इससे भिन्न है। यह शरीर परिग्रह है। संचित कर्म परिग्रह है। अर्थ और वस्तु परिग्रह है। चैतन्य से भिन्न जो कुछ है, वह सब परिग्रह है, यदि उसके प्रति मुर्छा नहीं है तो कोई भी वस्तु परिग्रह नहीं है। मूर्छा अपने आप परिग्रह है। वस्तु अपने आप परिग्रह नहीं है। वह मूर्छा से जुड़कर परिग्रह बनती है। फलित की भाषा, में मूर्छा और वस्तु उसका निमित्त हो सकती है। जिसका मन मूर्छा से शून्य है, उसके लिए वस्तु केवल वस्तु है, उपयोगिता का साधन है, किन्तु परिग्रह नहीं है। जिसका मन मूर्छा से पूर्ण है, उसके लिए वस्तु परिग्रह का निमित्त है। इस भाषा में परिग्रह के दो रूप बन जाते हैं - १. अंतरंग परिग्रह - मूर्छा। २. बाह्य परिग्रह - वस्तु । एक बार भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य गौतम एक रंक की ओर संकेत कर बोले - 'भंते! यह कितना अपरिग्रही है? इसके पास कुछ भी नहीं है।' 'क्या इनके मन में भी कुछ नहीं है?' 'मन में तो है।' 'फिर अपरिग्रही कैसे?' १. जिसके मन में मूर्छा है और पास में कुछ नहीं है, वह परिग्रह-प्रिय दरिद्र है। २. जिसके पास में जीवन-निर्वाह के साधन-मात्र हैं और मन में मूर्छा नहीं हैं, वह संयमी है। ३. जिसके मन में मूर्छा भी नहीं है और पास में भी कुछ नहीं है, वह अपरिग्रही है। ४. जिसके मन में मूर्छा भी है और पास में संग्रह भी है, वह परिग्रही है। भगवान् ने सामाजिक मनुष्य को अपरिग्रही की दिशा में ले जाने के लिए परिग्रहसंयम का सूत्र दिया । उसका भीतरी आकार था इच्छा-परिमाण और बाहरी आकार था वस्तु-परिमाण । इच्छा-परिमाण मानसिक स्वामित्व की मर्यादा है। इसे भाषा में बांधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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