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________________ क्रान्ति का सिंहनाद / १४९ किया था। सम्राट् कोणिक ने वैशाली पर आक्रमण किया। वरुण को रणभूमि में जाने का आदेश हुआ। वह गणतंत्र के सेनानी का आदेश पाकर रणभूमि में गया। चम्पा का एक सैनिक उसके सामने आकर बोला - ओ वैशाली के योद्धा! क्या देखते हो? प्रहार करो न!' वरुण ने कहा - 'प्रहार न करने वाले पर मैं प्रहार नहीं कर सकता और एक दिन में एक बार से अधिक प्रहार नहीं कर सकता।' चम्पा का सैनिक उसकी बात सुन तमतमा उठा। उसने पूरी शक्ति लगाकर बाण फेंका। वरुण का शरीर आहत हो गया। ___ वरुण कुशल धनुर्धर था। उसका निशाना अचूक था। उसने धनुष को कानों तक खींचकर बाण चलाया। चम्पा का सैनिक एक ही प्रहार से मौत के मुंह में चला गया। महाराज चेटक भी प्रहार न करने वाले पर प्रहार और एक दिन में एक बार से अधिक प्रहार नहीं करते थे। यह था प्रत्याक्रमण में अहिंसा का विवेक । यह थी हिंसा की अनिवार्यता और अहिंसा की स्मृति। महाराज चेटक अहिंसा के व्रती थे। अनाक्रमण का सिद्धांत उन्हें मान्य था। उनकी साम्राज्य-विस्तार की भावना मानवीय कल्याण की धारा में समाप्त हो चुकी थी। फिर भी वे अपने सामाजिक दायित्व के प्रति सजग थे। एक बार महारानी पद्मावती ने कोणिक से कहा – 'राज्य का आनन्द तो वेहल्लकुमार लूट रहा है। आप तो नाम भर के राजा हैं।' कोणिक ने इसका हेतु जानना चाहा। महारानी ने कहा – 'वेहल्लकुमार के पास सचेतक गंधहस्ती और अठारहसरा हार है। राज्य के दोनों उत्कृष्ट रत्न हमारे अधिकार में नहीं हैं, फिर राजा होने का क्या अर्थ है?' महारानी का तर्कबाण अमोघ था। कोणिक का हृदय विंध गया। उसने वेहल्लकुमार से हार और हाथी की मांग की। वेहल्लकुमार ने कहा - 'स्वामिन् ! सम्राट श्रेणिक ने अपने जीवनकाल में हार और हाथी मुझे दिए थे, इसलिए ये मेरी निजी सम्पदा के अभिन्न अंग हैं। आप मुझे आधा राज्य दें तो मैं आपको हार और हाथी दे सकता हूं।' कोणिक ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। कोणिक मेरे हार और हाथी पर बलात् अधिकार कर लेगा, इस आशंका से अभिभूत वेहल्लकुमार ने महाराज चेटक के पास चले जाने की गुप्त योजना बनाई। अवसर पाकर अपनी सारी सम्पदा के साथ वह वैशाली चला गया। कोणिक को इस बात का पता चला। उसने महाराज चेटक के पास दूत भेजकर हार, हाथी और वेहल्लकुमार को लौटाने की मांग की। चेटक ने वह ठुकरा दी। उसने दूत के साथ कोणिक को सन्देश भेजा - 'तुम और वेहल्लकुमार दोनों श्रेणिक के पुत्र और १. भगवई,७।१९४-२०२ । २. आवश्यकचूर्णि, उत्तरभाग पृ० १७३ : चेडएण एकस्स सरस्स आगारो कतो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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