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________________ १५०/ श्रमण महावीर चेल्लणा के आत्मज हो, मेरे धेवते हो । व्यक्तिगत रूप में तुम दोनों मेरे लिए समान हो। किन्तु वर्तमान परिस्थिति में वेहल्लकुमार मेरे शरणागत है। मैंने वैशाली-गणतंत्र के प्रमुख के नाते उसे शरण दी है, इसलिए मैं हार, हाथी और वेहल्लकुमार को नहीं लौटा सकता। यदि तुम आधा राज्य दो तो मैं उन तीनों को तुम्हें सौंप सकता हूं।' कोणिक ने दूसरी बार फिर दूत भेजकर वही मांग की। चेटक ने फिर उसे ठुकरा दिया। कोणिक ने तीसरी बात दूत भेजकर युद्ध की चुनौती दी। चेटक ने उसे स्वीकार कर लिया। चेटक ने मल्ल और लिच्छवि - अठारह गणराजों को आमंत्रित कर सारी स्थिति बताई। उन्होंने भी चेटक के निर्णय का समर्थन किया। उन्होंने कहा - 'शरणागत वेहल्लकुमार को कोणिक के हाथों में नहीं सौंपा जा सकता। हम युद्ध नहीं चाहते किन्तु कोणिक ने यदि हम पर आक्रमण किया तो हम अपनी पूरी शक्ति से गणतंत्र की रक्षा करेंगे।' कोणिक की सेना वैशाली गणतंत्र की सीमा पर पहुंच गई घिमासान युद्ध चालू हो गया। चेटक ने दस दिनों में कोणिक के दस भाई मार डाले। कोणिक भयभीत हो उठा। इस घटना ने निम्न तथ्य स्पष्ट कर दिए - १. अहिंसा कायरता के आवरण में पलने वाला क्लैव्य नहीं है। वह प्राण-विसर्जन की तैयारी में सतत जागरूक पौरुष है। २. भगवान् महावीर से अनाक्रमण का संकल्प लेने वाले अहिंसाव्रती आक्रमण की क्षमता से शून्य नहीं थे, किन्तु वे अपनी शक्ति का मानवीय हितों के विरुद्ध प्रयोग नहीं करते थे। ३. मानवीय हितों के विरुद्ध अभियान करने वाले जब युद्ध की अनिवार्यता ला देते हैं तब वे अपने दायित्व का पालन करने में पीछे नहीं रहते। यह आश्चर्य की बात है कि इस महायुद्ध में भगवान् महावीर ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। दोनों भगवान् के उपासक और अनुगामी थे। वे भगवान् की वाणी पर श्रद्धा करते थे। पर प्रश्न इतना उलझ गया था, कि उन्होंने उसे आवेश की भूमिका पर ही सुलझाना चाहा, भगवान् का सहयोग नहीं चाहा। और एक भयंकर घटना घटित हो गई। ऐसी ही एक घटना कौशांबी के आस-पास घटित हो रही थी। महारानी मृगावती ने उसमें भगवान् का सहयोग चाहा । भगवान् वहां पहुंचे। समस्या सुलझ गई। उज्जयिनी का राजा चण्डप्रद्योत बहुत शक्तिशाली था। वह उस युग का प्रसिद्ध कामुक था। महारानी मृगावती का चित्र-फलक देख वह मुग्ध हो गया। उसने दूत भेजकर शतानीक से मृगावती की मांग की। शतानीक ने कड़ी भर्त्सना के साथ उसे ठुकरा दिया । चण्डप्रद्योत क्रुद्ध होकर वत्स देश की ओर चल पड़ा। शतानीक घबरा गया। उसके १. निरयावलियाओ,१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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