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१४८ / श्रमण महावीर
मनुष्य से लड़ने के लिए प्रेरित करता है।
भगवान् महावीर ने युद्ध का इस आधार पर विरोध किया कि मानवीय हित परस्पर विरोधी नहीं हैं। उनमें सामंजस्य है और पूर्ण सामंजस्य। अहं और आकांक्षा ने विरोधी हितों की सृष्टि की है। पर वह वास्तविक नहीं है। उस समय की राजनीति में युद्ध को बहुत प्रोत्साहन मिल रहा था। उसकी प्रशस्तियां गाई जाती थीं। एक संस्कृत श्लोक उनका प्रबल प्रतिनिधित्व करता है -
जिते च लभ्यते लक्ष्मीः , मृते चापि सुरांगना। क्षणभंगुरको देहः, का चिन्ता मरणे रणे ॥
- विजय होने पर लक्ष्मी मिलती है, मर जाने पर देवांगना। यह शरीर क्षणभंगुर है, फिर समरांगण में मौत की क्या चिन्ता?
ऐसी प्रशस्तियों से युद्ध को लौकिक और अलौकिक- दोनों प्रतिष्ठाएं प्राप्त हो रही थीं। कुछ धर्म-संस्थाएं भी उसका समर्थन कर रही थीं। उसके विरोध में आवाज उठाने का अर्थ था - अपनी लोकप्रियता को चुनौती देना। उस परिस्थिति में महावीर ने उसका तीव्र विरोध किया। वह विरोध भौतिक हितों के सन्दर्भ में हो रहे युद्ध के समर्थन का विरोध था। वह विरोध समग्र मानवता के हितों के संदर्भ होने वाला विरोध था। वह विरोध शस्त्र से संरक्षित भीरुता का विरोध था। वह विरोध दूसरे राष्ट्र के नागरिकों की चिताओं पर खड़ी की जाने वाली अट्टालिकाओं का विरोध था। वह विरोध कायरता को संरक्षण देने वाला विरोध नहीं था। सच तो यह है कि भगवान् के विरोध की दिशा युद्ध नहीं, अनाक्रमण था। भगवान् जनता को और राष्ट्र को अनाक्रमण का संकल्प दे रहे थे। अनाक्रमण का अर्थ है - युद्ध का न होना । एक आक्रमण करे और दूसरा उसे चुपचाप सहे, वह या तो साधु हो सकता है या कायर । भगवान् जानते थे कि समूचा समाज साधुत्व की दीक्षा से दीक्षित नहीं हो सकता और भगवान् नहीं देना चाहते थे समाज को कायरता और कर्तव्य-विमुखता का अनुदान । आक्रमण होने पर प्रत्याक्रमण करने का वर्जन कैसे किया जा सकता था? किया जा सकता था आक्रमण के अहिंसक प्रतिरोध का विधान । उस युग में इस मनोभूमिका का निर्माण नहीं हो पाया था।
___ भगवान् व्यवहार की भूमिका के औचित्य को समझते थे। इसलिए उन्होंने जनता को प्रत्याक्रमण का निषेध नहीं दिया और नहीं दिया कर्त्तव्य के अतिक्रमण का सन्देश । भगवान् प्रत्याक्रमण में भी अहिंसा का दृष्टिकोण बनाए रखने का संकल्प देते थे। हिंसा की अनिवार्यता आ जाने पर भी करुणा की स्मृति का संकल्प देते थे।
वरुण भगवान् महावीर का उपासक था। उसने अनाक्रमण का संकल्प स्वीकार १. भगवई,७११९७ ।
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