________________
क्रान्ति का सिंहनाद / १४५
मांसाहार के प्रतिषेध का स्वर अर्थवान् हो गया । आज विश्व भर में जो शाकाहार का आन्दोलन चल रहा है, उसका मूल जैन परम्परा में ढूंढा जा सकता है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र- सभी जातियों में मांसाहार प्रचलित था । वैदिक धर्म में मांसाहार निषिद्ध नहीं था । बौद्ध धर्म के अनुयायी श्रमणपरम्परा में होकर भी मांसाहार करते थे । मांस न खाने का आन्दोलन केवल जैन परम्परा ने चला रखा था। उसका नेतृत्व महावीर कर रहे थे ।
महावीर ने निर्ग्रन्थों के लिए मांसाहार का निषेध किया। व्रती श्रावक भी मांस नहीं खाते थे। भगवान् ने नरक में जाने के चार कारण बताए। उनमें एक कारण है मांसाहार । मांसाहार के प्रति महावीर की भावना का यह मूर्त प्रतिबिम्ब है ।
महावीर का मांसाहार - विरोधी आन्दोलन धीरे-धीरे बल पकड़ता गया । उससे अनेक धर्म सम्प्रदाय और अनेक जातियां प्रभावित हुई और उन्होंने मांसाहार छोड़ दिया । मांसाहार के निषेध का सबसे प्राचीन प्रमाण जैन साहित्य के अतिरिक्त किसी अन्य साहित्य में है, ऐसा अभी मुझे ज्ञात नहीं ।
आहार जीवन का साध्य नहीं है, किन्तु उसकी उपेक्षा की जा सके वैसा साधन भी नहीं है। यह मान्यता की जरूरत नहीं, किन्तु जरूरत की मांग है।
शरीर - शास्त्र की दृष्टि से इस पर सोचा गया है पर इसके दूसरे पहलू बहुत कम छुए गए हैं। यह केवल शरीर पर ही प्रभाव नहीं डालता, इसका प्रभाव मन पर भी होता है । मन अपवित्र रहे तो शरीर की स्थूलता कुछ नहीं करती, केवल पाशविक शक्ति का प्रयोग कर सकती है। उससे सब घबराते हैं ।
मन शान्त और पवित्र रहे, उत्तेजनाएं कम हों - यह अनिवार्य अपेक्षा है। इनके लिए आहार का विवेक होना बहुत जरूरी है। अपने स्वार्थ के लिए बिलखते मूक प्राणियों की निर्मम हत्या करना क्रूर कर्म है। मांसाहार इसका बहुत बड़ा निमित्त है ।
महावीर ने आहार के समय, मात्रा और योग्य वस्तुओं के विषय में बहुत गहरा विचार किया। रात्रि - भोजन का निषेध उनकी महान् देन है।
भगवान् ने मिताशन पर बहुत बल दिया। मद्य, मांस, मादक पदार्थ विकृति का वर्जन उनकी साधना के अनिवार्य अंग हैं।
८. यज्ञ: समर्थन या रूपान्तरण
हमारे इतिहासकार कहते हैं - महावीर ने यज्ञ का प्रतिवाद किया । मैं इससे सहमत नहीं हूं। मेरा मत है - महावीर ने यज्ञ का समर्थन या रूपान्तरण किया था। अहिंसक यज्ञ का विधान वैदिक साहित्य में भी मिलता है। यदि आप उसे महावीर से पहले का मान लें तो मैं कहूंगा कि महावीर ने उस यज्ञ का समर्थन किया। और यदि आप उसे महावीर के बाद का मानें तो मैं कहूंगा कि महावीर ने यज्ञ का रूपान्तरण किया -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org