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नई स्थापनाएं : नई परम्पराएं / १२५
कुछ विद्वान् मानते हैं कि भगवान् महावीर यज्ञों और कर्मकाण्डों में संशोधन करने के लिए एक क्रान्तिकारी धर्म नेता के रूप में सामने आए और उन्होंने जैन धर्म का प्रवर्तन किया। किन्तु यह मत तथ्यों पर आधृत नहीं है । वास्तविकता यह है कि भगवान् श्रमणपरम्परा के क्षितिज में उदित हुए। उनका प्रकाश परम्परा से मुक्त होकर फैला। उसने सभी परम्पराओं को प्रकाशित किया। भगवान् के सामने वेदों की प्रामाणिकता और ब्राह्मणों की प्रधानता को अस्वीकृत करने का प्रश्न ही नहीं था। वह श्रमण-परम्परा के द्वारा पहले से ही स्वीकृत नहीं थी। श्रमण और वैदिक -- ये दोनों महान् भारतीय जाति की स्वतंत्र शाखाएं स्वतंत्र रूप में विकसित हुई थीं। दोनों में भगिनी का सम्बन्ध था, माता और पुत्री का नहीं। ___भगवान् महावीर समन्वयवादी थे। वे क्षत्रियों और ब्राह्मणों के बीच चल रही दीर्घकालीन कटुता को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने ब्राह्मणों को प्रधानता दी - एक जाति के रूप में नहीं, किन्तु व्यक्ति के रूप में। जातीय भेद-भाव उन्हें मान्य नहीं था।
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