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________________ १२४ / श्रमण महावीर भगवान् ने संयम की साधना के लिए तीन गुप्तियों का निरूपण किया -- १. मनगुप्ति - मन का संवर, केन्द्रित विचार या निर्विचार। २. वचनगुप्ति - वचन का संवर, मौन। ३. कायगुप्ति - काय का स्थिरीकरण, शिथिलीकरण, ममत्व-विसर्जन। भगवान् ने देखा - अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य आदि संयम-साधना की निष्पत्तियां हैं। उनकी सिद्धि के लिए साधनों का सम्यक् अभ्यास होना चाहिए। __ भाषा समिति और वचनगुप्ति के सम्यक् अभ्यास का अर्थ है - जीवन में सत्य की प्रतिष्ठा। ईर्या, एषणा, उत्सर्ग, कायगुप्ति और मनगुप्ति के सम्यक् अभ्यास का अर्थ है - जीवन में अहिंसा की प्रतिष्ठा। कायगुप्ति और मनगुप्ति के सम्यक् अभ्यास का अर्थ है - जीवन में ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा। कायगुप्ति के सम्यक् अभ्यास का अर्थ है- जीवन में अपरिग्रह की प्रतिष्ठा। भगवान् महावीर ने भगवान् पार्श्व के चतुर्याम धर्म का विस्तार कर त्रयोदशांग धर्म की प्रतिष्ठा की है । जैसे१. अहिंसा ८. सम्यक् आहार २. सत्य ९. सम्यक् प्रयोग ३. अचौर्य १०. सम्यक् उत्सर्ग ४. ब्रह्मचर्य ११. मनगुप्ति ५. अपरिग्रह १२. वचनगुप्ति ६. सम्यक् गति १३. कायगुप्ति ७. सम्यक् भाषा इस विभागात्मक धर्म की स्थापना के दो फलित हुए१. भगवान् पार्श्व के श्रमणों में आ रही आन्तरिक शिथिलता पर नियन्त्रण । २. आन्तरिक शिथिलता के समर्थक तत्वों का समाधान। भगवान् महावीर ने श्रामणिक, लौकिक और वैदिक - तीनों परम्पराओं के उन आचारों और विचारों का प्रतिवाद किया जो अहिंसा की शाश्वत प्रतिमा का विखंडन कर रहे थे। इस आधार पर भगवान् तीनों परम्पराओं के सुधारक या उद्धारक बन गए। १. उत्तरज्झयणाणि, २४ । १,२।। २. चारित्रभक्ति (पूज्यपाद रचित), श्लोक ७: तिस्रः सत्तमगुप्तयस्तनुमनोभाषानिमित्तोदयाः पंचेर्यादिसमाश्रयाः समितय:पंचव्रतानीत्यपि चारित्रोपहितं त्रयोदशतयं पूर्वं न दृष्टं परैराचारं परमेष्ठिनो जिनमतेर्वीरान् नमामो वयम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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