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नई स्थापनाएं : नई परम्पराएं
भगवान् महावीर ने समता धर्म को वही प्रतिष्ठा दी जो भगवान् पार्श्व ने दी थी। भगवान् ने दीक्षा का प्रारम्भ समता के संकल्प से ही किया और कैवल्य प्राप्त कर सबसे पहले समता धर्म की व्याख्या की। उनके गणधरों ने सर्वप्रथम समता के प्रतिनिधि ग्रन्थ सामायिक सूत्र की रचना की। किन्तु भगवान् ने परिस्थिति के संदर्भ में सामायिक का विस्तार कर दिया। सामायिक के तीन प्रकार हैं -
१. सम्यक्त्व सामायिक - सम्यग् दर्शन। २. श्रुत सामायिक - सम्यग् ज्ञान। ३. चारित्र सामायिक - सम्यक् चारित्र
भगवान् महावीर को सम्यग् दर्शन और सम्यग् ज्ञान में कोई परिवर्तन करना आवश्यक प्रतीत नहीं हुआ। उन्होंने केवल चारित्र सामायिक का विकास किया।
भगवान् महावीर ने चार महाव्रतों का विस्तार कर उनकी संख्या पांच कर दी। जैसे
१. अहिंसा २. सत्य ३. अचौर्य ४. ब्रह्मचर्य ५. अपरिग्रह।
भगवान् ने जितना बल अहिंसा पर दिया, उतना ही बल ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर दिया। उनकी वाणी पढ़ने वाले को इसकी प्रतिध्वनि पग-पग पर सुनाई देती है।
भगवान् ने कहा - 'जिसने ब्रह्मचर्य की आराधना कर ली, उसने सब व्रतों की आराधना कर ली। जिसने ब्रह्मचर्य का भंग कर दिया, उसने सब व्रतों का भंग कर दिया।
जो अब्रह्मचर्य का सेवन नहीं करते, वे मोक्ष जाने वालों की पहली पंक्ति में हैं।
भगवान् का यह स्वर उनके उत्तराधिकार में भी गुंजित होता रहा है। एक आचार्य ने लिखा है - 'कोई व्यक्ति मौनी हो या ध्यानी, वल्कल चीवर पहनने वाला हो या
१. (क) भगवती, २० । ६६ ।
(ख) मूलाचार, ७।३६, ३७ ।
(ग) तत्वार्थवार्तिक, भाग १, पृ० ४१ : चतुर्धा चतुर्यमभेदात् पञ्चधा सामायिकादि-विकल्पात् । २. पण्हावागरणाई,९।३। ३. पण्हावागरणाई,९।३।
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