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________________ तत्कालीन धर्म और धर्मनायक भारतीय क्षितिज में धर्म का सूर्य सुदूर में उदित हो चुका था । उसका आलोक जैसे-जैसे फैला वैसे-वैसे जनमानस आलोकित होता गया । आलोक के साथ गौरव बढ़ा और गौरव के साथ विस्तार । २५ भारतीय धर्म की दो धाराएं बहुत प्राचीन हैं - श्रमण और वैदिक । श्रमण धारा का विकास आर्य - पूर्वजातियों और क्षत्रियों ने किया । वैदिक धारा का विकास ब्राह्मणों ने किया। दोनों मुख्य धाराओं की उप-धाराएं अनेक हो गईं। भगवान् महावीर के युग में तीन सौ तिरेसठ धर्म-सम्प्रदाय थे- यह उल्लेख जैन लेखकों ने किया है। बौद्ध लेखक बासठ धर्म-सम्प्रदायों का उल्लेख करते हैं । जैन आगमों में सभी धर्म-सम्प्रदायों का चार वर्गों में समाहार किया गया है १. क्रियावाद २. अक्रियावाद ३. अज्ञानवाद ४. विनयवाद भगवान् महावीर गृहस्थ जीवन में इन वादों से परिचित थे। इनकी समीक्षा कर उन्होंने क्रियावाद का मार्ग चुना था। भगवान् महावीर का समय धार्मिक चेतना के नव-निर्माण का समय था । विश्व के अनेक अंचलों में प्रभावी धर्म-नेताओं के द्वारा सदाचार और अध्यात्म की लौ प्रज्ज्वलित हो रही थी। चीन में कन्फ्युशस और लाओत्से, यूनान में पैथागोरस, ईरान में जरस्थ, फिलस्तीन में मूसा आदि महान् दार्शनिक दर्शन के रहस्यों को अनावृत कर रहे थे । भारतवर्ष में श्वेतकेतु, उद्दालक, याज्ञवल्क्य आदि ऋषि औपनिषदिक अध्यात्म का प्रचार कर रहे थे । श्रमण परम्परा में अनेक तीर्थंकर विचार - क्रान्ति का नेतृत्व कर रहे थे । उनमें मुख्य थे - मक्खलिपुत्त गौशालक, पूरणकश्यप, पकुधकात्यायन, अजितकेशकंबली और संजयवेलट्ठपुत्त । भगवान् बुद्ध ने महावीर के दस वर्ष बाद बोधि प्राप्त की थी । भगवान् महावीर ने ई०पू० ५५७ में कैवल्य प्राप्त किया और भगवान् बुद्ध ने ई०पू० ५४७ में बोधि प्राप्त की। भगवान् पार्श्व का निर्वाण हो चुका था । उनकी परम्परा का नेतृत्व कुमार श्रमण शी कर रहे थे । भगवान् पार्श्व का धर्म भारतवर्ष के विभिन्न अंचलों में प्रभावशाली हो चुका था । भगवान् नागवंशी थे । अनेक नागवंशी राजतंत्र और गणतंत्र उनके अनुयायी थे । मध्य एवं १. सूयगडो १ । ६ । २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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