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________________ अतीत का सिंहावलोकन / ११७ "उसने बहुत देर तक पार्खापत्यीय श्रमणों से वाद-विवाद किया। फिर मेरे पास लौट आया। उसने मुझसे कहा – 'भन्ते! आज मैंने परिग्रही साधुओं को देखा है।' मैंने अन्तर्ज्ञान से देखकर बताया - 'वे परिग्रही नहीं हैं । वे भगवान् पार्श्व के शिष्य हैं ।'५ । 'एक बार तम्बाय सन्निवेश में भी पार्श्व की परम्परा के आचार्य नन्दिषेण के श्रमणों से गोशालक मिला था। गौतम! नन्दिषेण बहुत ज्ञानी और ध्यानी श्रमण थे। वे रात्रि के समय चौराहे पर खड़े होकर ध्यान कर रहे थे। उस समय आरक्षिक का पुत्र आया। उसने नन्दिषेण को चोर समझकर मार डाला।'२ 'भन्ते! यह तो बहुत बुरा हुआ।' 'गौतम! क्या दासप्रथा बुरी नहीं है? क्या पशु-बलि बुरी नहीं है? क्या शूद्र के प्रति घृणा बुरी नहीं है? क्या नारी जाति के प्रति हीनता का भाव बुरा नहीं है? आज का समाज न जाने कितनी बुराइयों का भार ढो रहा है । मैं इन बुराइयों को पत्र, पुष्प और फल मानता हूं। बुराई की जड़ है मिथ्या दृष्टिकोण । गौतम! कुछ धर्माचार्य अग्र के शोधन में विश्वास करते हैं। मैं मूल और अग्र - दोनों के शोधन की अनिवार्यता प्रतिपादित करता हूं। तुम जाओ और इस पर गहराई से विचार करो' - यह कहकर भगवान् मौन हो गए। गौतम अतीत से हटकर भविष्य की कल्पना में खो गए। १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २८५, २८६ । २. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ०२९१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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