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________________ संघातीत साधना / १११ भगवान् महावीर ने इसका समर्थन किया है। एक साधक दूसरे साधक की सेवा करे, इसमें अनुचित क्या है? इसे गृहस्थ-कर्म क्यों माना जाए?' संघबद्ध रहना और परस्पर सहयोग करना, उस समय पूर्णत: विवाद-रहित नहीं था। फिर भी भगवान् महावीर ने संघबद्ध साधना का मूल्य कम नहीं किया। साथ-साथ संघमुक्त साधना को भी पदच्युत नहीं किया। दोनों विधाओं के लिए भगवान् का दृष्टिकोण स्पष्ट था। उन्होंने कहा - १. जिस साधक को सहयोग की अपेक्षा हो, वह संघ में रहकर साधना करे। २. जिसमें अकेला रहने की क्षमता हो, वह एकाकी साधना करे। ३. संघ में निपुण सहायक - उत्कृष्ट या समान चरित्र वाले साधक के साथ रहे। हीन चरित्र वाले साधक के साथ न रहे। निपुण सहायक के अभाव में अकेला रहकर साधना करे। १. उत्तरज्झयणाणि, ३२।५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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