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________________ ९०/ श्रमण महावीर उद्यानपाल आज एक नया संवाद लेकर राजा के पास पहुंचा। वह बोला, 'महाराज! आज अपने उद्यान में भगवान् महावीर आए हैं।' राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उद्यानपाल ने फिर कहा, 'भगवान् आज बोल रहे हैं। यह सुन राजा को आश्चर्य हुआ।' _ 'महाराज ! मैं निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता, फिर भी कुछ लोगों को मैनें यह चर्चा करते हुए सुना है कि भगवान् आज धर्म का उपदेश देंगे', उद्यानपाल ने कहा। राजा प्रसन्नता के सागर में तैरने लगा। वह स्वयं महासेन वन में गया और नागरिकों को इसकी सूचना करा दी। इन्द्रभूति ने देखा - हजारों-हजारों लोग एक ही दिशा में जा रहे हैं। उनके मन में कुतूहल उत्पन्न हुआ। उन्होंने यज्ञशाला के संदेश-वाहक को लोकयात्रा का कारण जानने को भेजा। संदेश-वाहक ने आकर बताया, 'आज यहां श्रमणों के नए नेता आए हैं । उनका नाम महावीर है। वे अपनी साधना द्वारा सर्वज्ञ बन गए हैं। आज उनका पहला प्रवचन होने वाला है। इसलिए हजारों-हजारों लोग बड़ी उत्सुकता से वहां जा रहे हैं।' संदेश-वाहक की बात सुन इन्द्रभूति तिलमिला उठे। उन्होंने मन-ही-मन सोचाये श्रमण हमारी यज्ञ-संस्था के पहले से क्षीण करने पर तुले हुए हैं । श्रमण नेता पार्श्व ने हमारी यज्ञ-संस्था को काफी क्षति पहुंचाई हैं। उनके शिष्य आज भी हमें परेशान किए हुए हैं। जनता को इस प्रकार अपनी ओर आकृष्ट करने वाले इस नए नेता का उदय क्या हमारे लिए खतरे की घंटी नहीं है? मुझे इस उगते हुए अंकुर को ही उखाड़ फेंकना चाहिए। यह चिनगारी है। इसे फैलने का अवसर देना समझदारी नहीं होगी। बीमारी का इलाज प्रारम्भ में न हो तो फिर वह असाध्य बन जाती है। अब विलम्ब करना श्रेय नहीं है। मैं वहां जाऊं और श्रमण नेता को पराजित कर वैदिक धर्म में दीक्षित करूं। इसके दो लाभ होंगे - १. हमारी यज्ञ-संस्था को एक समर्थ व्यक्ति प्राप्त हो जाएगा। २. हजारों-हजारों लोग श्रमण-धर्म को छोड़ वैदिक धर्म में दीक्षित हो जाएंगे। इन्द्रभूति ने इस विषय पर गंभीरता से सोचा। अपनी सफलता के मधुर स्वप्न संजोए। शिष्यों को साथ ले, वहां से चलने को तैयार हो गए। इतने में ही उन्हें कुछ लोग वापस आते हुए दिखाई दिए। इन्द्रभूति ने उनसे पूछा - 'आप कहां से आ रहे हैं?' 'भगवान् महावीर के समवसरण से।' 'आप लोगों ने महावीर को देखा? वे कैसे हैं?' १. दिगम्बर परम्परा के अनुसार भगवान् महावीर ने केवलज्ञान-प्राप्ति के ६५ दिन बाद श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के दिन पहला प्रवचन किया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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