________________
२०
तीर्थ और तीर्थंकर
भगवान् महावीर वैशाख शुक्ला एकादशी को मध्यम पावा पहुंचे। महासेन उद्यान में ठहरे। अन्तर् में अकेले और बाहर भी अकेले। न कोई शिष्य और न कोई सहायक।
इतने दिनों तक भगवान् साधना में व्यस्त थे। वह निष्पन्न हो गई। अब उनके पास समय ही समय है। उनके मन में प्राणियों के कल्याण की सहज प्रेरणा स्फूर्त हो रही है।
मध्यम पावा में सोमिल नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उसे संपन्न करने के लिए ग्यारह यज्ञविद् विद्वान् आए।
इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति - ये तीनों सगे भाई थे। इनका गोत्र था गौतम। ये मगध के गोबर गांव में रहते थे। इनके पांच-पांच सौ शिष्य थे।
दो विद्वान् कोलाग सन्निवेश से आये। एक का नाम था व्यक्त और दूसरे का सुधर्मा। व्यक्त का गोत्र था भारद्वाज और सुधर्मा का गोत्र था अग्नि वैश्यायन । इनके भी पांच-पांच सौ शिष्य थे।
दो विद्वान् मौर्य सन्निवेश से आए। एक का नाम था मंडित और दूसरे का मौर्यपुत्र । मंडित का गोत्र था वाशिष्ठ और मौर्यपुत्र का गोत्र था काश्यप। इनके साढ़े तीन सौ, साढ़े तीन सौ शिष्य थे। __अकंपित मिथिला से, अचलभ्राता कौशल से, मेतार्य तुंगिक से और प्रभास राजगृह से आए। इनमे पहले का गोत्र गौतम, दूसरे का हारित और शेष दोनों का कौंडिन्य था। इनके तीन-तीन सौ शिष्य थे।
ये ग्यारह विद्वान् और इनके ४४०० शिष्य सोमिल की यज्ञवाटिका में उपस्थित थे।
भगवान् महावीर ने देखा, अब जनता को अहिंसा की दिशा में प्रेरित करना है। जो उसका महाव्रती बनना चाहे, उसके लिए महाव्रती और जो अणुव्रती बनना चाहे उसके लिए अणुव्रती बनने का पथ प्रशस्त करना है। बलि, दासता आदि सामाजिक हिंसा का उन्मूलन करना है। इस कार्य के लिए मुझे कुछ सहयोगी व्यक्ति चाहिए। वे व्यक्ति यदि ब्राह्मण वर्ग के हों तो और अधिक उपयुक्त होगा।
भगवान् ने प्रत्यक्ष ज्ञान से देखा - इन्द्रभूति आदि धुरन्धर विद्वान् यज्ञशाला में उपस्थित हैं । उनकी योग्यता से भगवान् खिंच गए और भगवान् के सकंल्प से वे खिंचने लगे।
-
१. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ.३४२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org