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जीवन-विज्ञान शिक्षा का अभिनव आयाम
७५ से समाधान नहीं हो सकता। समस्या का मूल व्यक्ति के अन्तर भाव और मानस में हैं। भाव और मानस को रूपान्तरित कर ही समाधान किया जा सकता है। बीज बिना फल की आकांक्षा __ आचार्य श्री तुलसी और युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपने विचारों को अभिव्यक्ति देते हुए कहा-"आदमी चारित्रिक विकास देखना चाहता है. अनुशासन को प्रतिष्ठित देखना चाहता है, पर जब उनकी परिणति नहीं देखता तब सारा दोष शिक्षा प्रणाली पर डाल देता है। शिक्षा प्रणाली में जब चारित्रिक विकास के बीज ही नहीं हैं, अनुशासन लाने के तत्त्व ही नहीं हैं ? तब उनकी परिणति साक्षात कैसे होंगी? ये प्रयत्न बीज के बिना फल पाने जैसे हैं। यदि शिक्षा प्रणाली में चरित्र और अनुशासन के बीज हों फिर निष्पत्ति न आए तो चिन्ता का विषय हो सकता है। बीज होने पर ही फसल न हो किसान चिन्तित हो सकता है। पर बीज बोया ही नहीं और फसल की आशा लिए बैठना वज्र मूर्खता है। जीवन विज्ञान नया आयाम
शिक्षा जगत् में जो असन्तुलन आ गया है। केवल शरीर और बौद्धिक विकास का प्रयत्न किया जा रहा है। मानसिक और भावनात्मक विकास को भूला दिया गया है। सन्तुलित विकास के लिए शरीर, बुद्धि, मन और भाव चारों के विकास की भूमिका शिक्षा को निभानी होगी। तब ही समाज में श्रेष्ठ व्यक्तिव का निर्माण किया जा सकता है।
व्यक्तित्व निर्माण के मौलिक तत्त्वों पर ध्यान देकर अनेक क्रियान्वय की व्यवस्था करनी होगी। आज जो कुछ हो रहा है केवल कागजी कार्यवाही अथवा बुद्धि को विकसित करने का प्रयास मात्र लगता है। उसे बुद्धि के विकास की बजाय सूचना-संग्रह कहा जाए तो अधिक उपयुक्त होगा। शिक्षा मस्तिष्क को केवल एक कम्प्यूटर की तरह प्रयोग कर रही है। अधिक से अधिक सूचनाओं को ग्रहण करने वाला बड़ा विद्वान् और कुशल कहलाता है जबकि यह कार्य एक कम्प्यूटर मशीन अधिक कुशलता से कर सकती है। मनुष्य का महत्त्व इसलिए नहीं कि वह नाना समस्याओं के संकलन में कुशल है उसका गौरव तो इसमें है कि वह समस्याओं का समाधान कुशलता से कर समाज में शान्ति और व्यवस्था को कायम कर सके।
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