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________________ जीवन विज्ञान : शिक्षा का अभिनव आयाम दिल्ली विश्वविद्यालय के परिसर में शिक्षाविदों की एक संगोष्ठी चल रही थी। विषय था "योग का शिक्षा में प्रयोग" | योग की उपयोगिता निर्विवाद है। योगासन से बालक का शारीरिक, मानसिक विकास हो सकता है। आसन के प्रयोग से बालक-बालिकाओं का स्वास्थ्य अच्छा होता है साथ ही उनमें अनुशासन की भावना का भी विकास होता है। उनके सम्मुख यह कठिनाई आ रही थी कि आसनों के अनेक नाम तो पशु-पक्षियों जैसे-मयूर आसन, शशांकासन, भुजंगासन, मत्स्यासन है लेकिन मुख्य आसन का नाम सूर्य नमस्कार है। "सूर्य नमस्कार" नाम कैसे रह सकता है ? धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र में ऐसा कैसे हो सकता है ? अन्ततः कल्याणकारी योजना रद्द हो गई। केवल सूर्य नमस्कार के नामकरण के कारण ऐसा हुआ। धर्म-निरपेक्षता की अजीब दृष्टि है। बालपोथी में वर्णमाला में चित्रांकित वर्गों में "क" को कबूतर से परिचित कराया गया। "ग" को गणेश से। आश्चर्य तब हुआ जब शिक्षाविदों ने इसका विरोध किया और अन्त में "ग" का परिचय गधा चिनहित हुआ। तब शालाओं में वह पुस्तक पाठ्यक्रम में स्वीकृत हुई। गणेश धार्मिक हो गया। गधा धर्मनिरपेक्ष । गणेश और गधे का प्रश्न नहीं है। प्रश्न यहां यह है कि शिक्षाविदों के मानस भी किस तरह तथ्यहीन तत्वों में केन्द्रित हो जाते हैं। धर्म निरपेक्षता का तात्पर्य यदि धर्म शून्यता है तब तो अत्यन्त कठिनाई होगी। धर्म यदि जीवन और व्यवहार से निकाल दिया जाए तो किस आधार से व्यक्ति टिकेगा। व्यक्ति और समाज का सामंजस्य धर्म के तत्त्वों से ही हो सकता है। धर्म के आधारभूत तत्त्वों के बिना संघर्ष और अंत ही निश्चित है। धर्म निरपेक्षता का तात्पर्य धर्म निरपेक्षता का तात्पर्य सम्प्रदाय रहित धर्म । भारत गणतंत्र है जिसमें अनेक धर्म, भाषा और संस्कृति है किसी को किसी संस्कृति को स्वीकृत करने से रोका नहीं जा सकता। सबको अपने-अपने विचारों का प्रसार करने का हक है। विचार स्वातंत्र्य गणतंत्र का मूल आधार है। धर्म की स्वीकृति स्वेच्छिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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